Thursday, September 17, 2020

हौसलों की उड़ान



हौसलों से हारी मजबूरियां हज़ारों 



बात हौसलों की जब कहीं भी होती है

ज़िन्दगी आपकी आंखों में तैर जाती है


 65 साल की उम्र में हौसलों को दे रही नई ऊंचाईयां

कहते हैं जिनके हैसले बुलन्द होते हैं वह मुश्किलों में भी आसानियां ढूंढ लेते हैं। फिर वह मुश्किल शारिरिक हो या सामाजिक।

इन्हीं हौसलों की एक मिसाल हैं नईमा जी.......

नईमा जी जो किसी जमाने से इस ज़माने तक अपने हुनर को लेकर बहुत ही मशहूर हैं। बचपन से जिनको सिलाई कढ़ाई का शौक था। और उन का यह शौक सिर्फ शैक तक सीमित नहीं था। बल्कि वह बहुत ही बेहतरीन सिलाई कढ़ाई करती भी थीं। 

वक्त का पहिया चलता रहा। ज़िन्दगी खुशी, दुख और आज़माईशों का सफर तय करती हुई आगे बढ़ती रही। और इन्हीं सफर में जब नईमा जी के पति को एक के बाद एक कई बिमारियों ने घेर लिया। ऐसे वक्त में नईमा जी ने अपने हुनर को अपना पेशा बनाने का फैसला किया। और उन्होंने अपनी कढ़ाई के हुनर को चुना। लेकिन चूंकि हाथ की कढ़ाई में समय और मेहनत बहुत लगती है। इस लिए उन्होंने एक एंब्रॉयडरी मशीन खरीदी। और फिर उस पर एंब्रॉयडरी बनाना सीखा। किसी ट्रेनर या कोर्स के बिना।

और फिर शुरू हो गया उनका काम। जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया। लोग आते गये कस्टमर बढ़ते गये। और फिर उनका काम बढ़ता गया। आर्डर इतना ज़्यादा रहने लगा कि लोग दो-दो महीने पहले ही अपना कपड़ा देकर बुकिंग करा लेते थे। नईमा जी के हौसलों को उनके परिवार ने ही नहीं बल्कि समाज ने भी मान लिया था।

काम बढ़ने की वजह से उन्होंने कई एंब्रॉयडरी बनाने वाले कारीगर को रखा। लेकिन कारीगर उनके मन मुताबिक काम नहीं कर पाये। इस वजह से वह खुद ही एंब्रॉयडरी करती रहीं। उनकी कलर मैचिंग और डिज़ाइन के लोग दीवाने थे। क्योंकि वह बारीक से बारीक काम इतनी सफाई से करती थी कि देखने वाला हैरान रह जाता कि यह कम्प्यूटर एंब्रॉयडरी नहीं बल्कि हैंड एंब्रॉयडरी है।

वक्त चलता रहा ज़िन्दगी गुज़रती रही। हर मुश्किलों को नईमा जी अपनी समझदारी और हौसलों से पार करती रहीं।

लेकिन शायद इम्तिहान अभी और थे। कुदरत को नईमा जी को अभी और आज़माना था। 

और फिर नईमा जी को फालिज (paralysis) का अटैक आया। जिसकी वजह से उनका शरीर सुन्न हो गया। लेकिन यह शायद उनका हौसला ही था कि जो वह  इतनी बड़ी बीमारी से बड़े ही हौसलों से लड़ी। क्योंकि डाक्टर को भी पूरी उम्मीद नहीं थी कि यह अब ठीक होंगी भी की नहीं। लेकिन यह शायद नईमा जी की उम्मीद और अल्लाह पर यकीन ही तो था जो नईमा जी को मौत से ज़िन्दगी की तरफ ले आयी। आज भी उनका एक हाथ काम नहीं करता। लेकिन यह नईमा जी का ही हौसला है जो हमेशा शुक्र गुज़ार रहती हैं कि एक हाथ काम नहीं कर रहा तो क्या हुआ दूसरा हाथ तो कर रहा है।

और आज चौदह साल बाद 65 साल की उम्र में नईमा जी ने अपने खाली वक्त को सदुपयोग करते हुए फिर अपने हौसलों से अपना काम शुरू किया। और आज वह शिशुओं (infant) के बहुत ही खूबसूरत और बेहतरीन बिस्तर का सेट बच्चों की टॉवल और बोतल कवर से लेकर बच्चों के जूते और चप्पल जो कि बहुत ही खूबसूरत डिजाइन में हर चीज़ तैयार करवाती हैं। और इसको सेल करती हैं। जिसकी डिजाइनिंग और कटिंग वह खुद करती हैं। एक हाथ से काम करती हैं। मगर यर एक हाथ चार हाथ के समान है। इंचीटेप से कपड़ा नापने में दिक्कत होने पर स्केल से कपड़ों को नापती हैं। 

और आज नईमा जी के इस काम से बहुत सी ऐसी महिलाएं जुड़ गयी हैं। जिनके पास कोई काम नहीं था। आज उनके साथ जुड़ी औरतों को ना सिर्फ रोज़गार मिल रहा है। बल्कि नईमा जी के साथ काम करते हुए बहुत कुछ सीखने के साथ-साथ उन औरतों में हौसला और हिम्मत भी आई है। जो शायद बड़ी बड़ी फीस देकर भी कोई नहीं सीख सकता।

सलाम है नईमा जी के हौसलों को जिन्होंने दिखा दिया कि मजबूरियां जितनी भी बड़ी क्यों ना हो हौसलों से हार ही जाती हैं।









Friday, September 4, 2020

जीत आपकी | PUBG | PUBG banned in India | PUBG News | game Zone

 




 जीत आपकी.........


गेम क्या है?

गेम ज़िन्दगी है?

गेम हम क्यों खेलते हैं?

गेम खुशी है?

गेम दोस्त है?

गेम को कभी ज़िन्दगी का हिस्सा माना जाता था। 

बच्चों को गेम खेलने के लिए कहा जाता था।

अक्सर बच्चे और बड़े मिलकर भी गेम खेलते थे।

वक्त के साथ सब बदल जाता है। यह हम और आप अक्सर सुनते हैं। लेकिन आज हम देखते हैं कि वक्त के साथ चीजें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं। 

कल गेम क्या था? और क्यों खेलते थे?

कल के गेम में खुशी, तन्दुरूस्ती और मां-बाप का साथ था। शाम हुई नहीं कि बच्चे और बड़े सब कहीं मैदान में, घर के आंगन में या छत पर इकट्ठा हो जाते और गेम शुरू हो जाता था। उस वक्त गेम को गेम कम और खेल ज़्यादा कहा जाता था। कभी आई-स्पाई तो कभी कबड्डी तो कभी कुछ, कुछ समझ नहीं आ रहा तो रेस ही कर लेते। इस के इलावा ताश, लूडो, कैरम तो रोज़ का गेम था ही। कुछ नहीं तो चार लोग एक-एक पेपर लेकर बैठ गये। और उस पेपर पर नाम, शहर, खाना, फिल्म टाइटल देते। गेम का नियम यह था कि चारों खेलने वालों में से एक-एक लोग बारी बारी कोई शब्द बोलेंगे और उस शब्द से सबको हर कॉलम में लिखना रहता था। और उसका एक वक्त होता था कि इतने देर में जो जितना लिख ले उसी हिसाब से उसको प्वाइंट मिलता था। खेलते वक्त मज़ा तो आता ही था बच्चे बहुत कुछ सीख भी लेते थे।



वक्त के साथ-साथ गेम भी बदलते रहे। और उन गेमों ने बहुत आसानी से हमारी ज़िन्दगी में जगह बना ली।

लेकिन फिर गेम बदलते-बदलते हमारी ज़िन्दगी ही बदल गयी। कल जो हम खुली हवा में आसमान के नीचे गेम खेलने के साथ-साथ अपनी सेहत भी बना रहे थे। वहीं आज हम बंद कमरों में अपनी सेहत के साथ-साथ अपनी सोच को भी बिगाड़ रहे हैं।

 जहां दो से चार लोग इकट्ठा हुए नहीं कि गेम शुरू। कल के मां-बाप को भी बच्चों को गेम खेलते देख फ़िक्र नहीं होती थी। जैसे कि आज रहती है।

वक्त बदला गेम बदला। आज गेमों की दुनिया हमको किस खतरनाक मोड़ पर ले आयी है यह हम सब बहुत अच्छे से जानते हैं। लेकिन बहुत कुछ जानने के बावजूद भी आज हम इतने मजबूर क्यों हैं। यह सबसे बड़ा विषय है।

पबजी गेम जिसके छोटे बड़े बहुत से दीवाने हैं। 



पबजी क्या है? एक आईलैंड जिस पर आप को रहना है। खुद को बचाना भी है और दूसरों को मारना भी है। जिस में एक सेफ जोन होता है। जो धीरे-धीरे कम होते हुए खत्म हो जाता है। उस सेफ जोन को खत्म होने से पहले आप को विजयी होना होता है। और गेम के दीवाने उस झूठी जीत के लिए ना जाने कितनी सच्ची खुशयों को कुर्बान कर देते हैं।

पबजी जैसा गेम बनाने वाले ने क्या सोच कर यह गेम बनाया था। यह बनाने के पीछे बनाने वाले का मकसद क्या था। यह तो बनाने वाला ही सही बता सकता है। लेकिन बनाने वाले ने अच्छी चीज़ नहीं बनायी। यह हम कह सकते हैं। 



पबजी भारत में बैन होने से जहां एक वर्ग में उदासी और दुःख है। तो वही दूसरी तरफ खुशी और सुकून भी है।

पबजी को खेलने वाले उसको खेलते समय उसमें इस तरह खो जाते थे कि उन्हें अपने आसपास की भी खबर नहीं होती थी। वह उसी दुनिया के हो कर रह जाते थे। जो दुनिया उनके लिए थी ही नहीं।

आज पबजी के बैन के बाद उसके खेलने वाले उदास और दुःखी हैं। लेकिन ऐसा क्यों है। कि पबजी खेलने वालों के आसपास रहने वाले लोग आज पबजी बैन हो जाने से खुश हैं। आज पबजी के बैन की वजह से बच्चों को दुखी देखकर भी मां बाप खुश हैं। कहते हैं मां बाप बच्चों को दुखी नहीं देख सकते। और वह बच्चों की हर मुराद पूरी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन पबजी के बैन से आज मां बाप दुखी नहीं हैं। क्योंकि मां बाप जानते हैं कि आज का यह दुख बच्चों के कल के लिए बेहतर है।

गेम तो मन में ताज़गी और माहौल में खुशी लाता है। लेकिन पबजी जैसा गेम इंसान को थका देता है। खेलने वाले उस गेम ज़ोन से निकल ही नहीं पाता जो ज़ोन उसके किसी काम का नहीं।

क्यों आज पबजी जैसे गेम की वजह से हर रिश्ता प्राभावित है?

क्यों आज पबजी जैसे गेम की वजह से हम हार रहे हैं?

क्यों आज हम पबजी जैसे गेम के आगे हार रहे हैं?

क्या आज हमारे आस-पास कोई ऐसा गेम नहीं जिसको हम कुछ देर खेल कर खत्म कर दें?




आज एक पबजी के बैन होने से ऐसा नहीं है कि पबजी जैसे गेम अब हमारी ज़िन्दगी में नहीं आयेंगे। यह सिलसिला अब खत्म होने वाला नहीं। लेकिन पबजी जैसे गेम से हमको अपने को और अपनों को कैसे बचाना है। यह सबसे बड़ा विषय है। 

जीतने की ललक ज़िन्दगी में हो, हारने का डर किसी को ना हो।

गेम खेलें और जीतने की कोशिश भी करें। मगर ध्यान रहे गेम को जीतने में रिश्तों को ना हार जाए।

आज पबजी बैन हो गया तो क्या हुआ। आज भी बहुत सारे गेम हैं। जिनको हम पीछे छोड़ आये हैं। ज़रा एक बार उन गेमों को याद तो करें।

बारिश का पानी काग़ज़ की कश्ती को आज भी ढूंढता होगा। जो कभी बरसात में तैरती थी हमारी वजह से।

पंखे की हवा उन जहाज़ों को कैसे भूल सकता है जो कभी हम अपनी भरी हुई कापी के पन्नों को फ़ाड़ कर बनाते और बड़े शान से उनको उड़ाते थे।

वह रूमाल से आंखों को ढंक कर दोस्तों को पकड़ना, तो कभी कुछ ना समझ आने पर चिड़िया उड़ खेल खेलते हुए नाजाने कितने ही ऐसे जानवरों को भी उड़ा देते जो उड़ना नहीं जानते। और फिर इन छोटी-छोटी बातों पे बड़े-बड़े कहकहे लगा कर ना जाने कितने दुखों को हरा जाते थे। और जीत लेते थे वह हकीकी खुशी जो कभी हमें दुखी नहीं कर सकती।