मिरर (वह अपनी सी छवि)
आईना बन के खड़ा था
तो निहारते थे सभी
देख के मुझे मुस्कुराता था कोई
तो कोई देख के उदास बहुत
सुलझ गयी ना जाने उलझी लटे कितनी
संवर गयी ना जाने दुल्हनें कितनी
मैं आईना ना जाने कितनें का
थी छवि मेरे अंदर ना जाने कितनों की
कभी टूटा जो दिल किसी का भी
वह आ के जुड़ता हमीं से था
कोई आंखों को तेरता था मुझे
कोई भवों को सिकोड़ता था बहुत
हर किसी के आंखों का काजल सवांरते थे हमीं
वह उन के होंठों की लाली हमें से थी
वह अश्क आ जो गया आंखों में कभी
नज़र बचा के सभी से नज़र मिलाते वह हमीं से थे
वह सुर्खियां तेरे हसीन गालों की
मुझे घंटों निहारने से हैं
बहुत चाहते थे हमें वह
बहुत निहारते थे हमें वह
मैं था भी तो उनका यह हक था ही उन्हें
मगर वह टूटा जो एक दिन दिल उनका
हुए गुस्से में वह बहुत अपसेट
वह उन के दर्द में नहीं वहां कोई अपना
वह बहुत अकेली और आईना अकेला मैं
वह तैश में थी बहुत और बहुत गमगीन
और मैं खामोश तमाशाई उनका
थे नहीं लफ्ज़ मेरे पास कोई उलफत के
मैं तो खामोशी का पैकर था अज़ल से ही यहां
मेरी खामोशी से आजिज़ आकर
वह मोबाइल जो मुझे तान के मारा उसने
था जो गुस्सा वह किसी का जो उतारा मुझ पे
मैं वह तन्हा सा अकेला सा मिमर बेचारा
मैं जो टूटा तो बहुत टूट के बिखरा एक दम
हां मगर टूट के यह बात को जाना हमने
ना कोई मरता है यहां कोई किसी के भी बिना
हर कोई जीता है यहां ज़िन्दगानी अपनी
संभल-संभल के करचियों को समेटा उसने
कोई अफसोस कोई उदासी ना थी उन को
फिर कहां हम और कहां का वह याराना
वह जो रहते थे बड़ी शान से हम वह तन्हा
था मगर अब मेरी जगह पे वहां तन के कोई और।
तो निहारते थे सभी
देख के मुझे मुस्कुराता था कोई
तो कोई देख के उदास बहुत
सुलझ गयी ना जाने उलझी लटे कितनी
संवर गयी ना जाने दुल्हनें कितनी
मैं आईना ना जाने कितनें का
थी छवि मेरे अंदर ना जाने कितनों की
कभी टूटा जो दिल किसी का भी
वह आ के जुड़ता हमीं से था
कोई आंखों को तेरता था मुझे
कोई भवों को सिकोड़ता था बहुत
हर किसी के आंखों का काजल सवांरते थे हमीं
वह उन के होंठों की लाली हमें से थी
वह अश्क आ जो गया आंखों में कभी
नज़र बचा के सभी से नज़र मिलाते वह हमीं से थे
वह सुर्खियां तेरे हसीन गालों की
मुझे घंटों निहारने से हैं
बहुत चाहते थे हमें वह
बहुत निहारते थे हमें वह
मैं था भी तो उनका यह हक था ही उन्हें
मगर वह टूटा जो एक दिन दिल उनका
हुए गुस्से में वह बहुत अपसेट
वह उन के दर्द में नहीं वहां कोई अपना
वह बहुत अकेली और आईना अकेला मैं
वह तैश में थी बहुत और बहुत गमगीन
और मैं खामोश तमाशाई उनका
थे नहीं लफ्ज़ मेरे पास कोई उलफत के
मैं तो खामोशी का पैकर था अज़ल से ही यहां
मेरी खामोशी से आजिज़ आकर
वह मोबाइल जो मुझे तान के मारा उसने
था जो गुस्सा वह किसी का जो उतारा मुझ पे
मैं वह तन्हा सा अकेला सा मिमर बेचारा
मैं जो टूटा तो बहुत टूट के बिखरा एक दम
हां मगर टूट के यह बात को जाना हमने
ना कोई मरता है यहां कोई किसी के भी बिना
हर कोई जीता है यहां ज़िन्दगानी अपनी
संभल-संभल के करचियों को समेटा उसने
कोई अफसोस कोई उदासी ना थी उन को
फिर कहां हम और कहां का वह याराना
वह जो रहते थे बड़ी शान से हम वह तन्हा
था मगर अब मेरी जगह पे वहां तन के कोई और।
-Little-Star
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