शुभ लगन.....
मुबारक हो तुम कोबेटी हुई है
आवाज़ यह आई
कानों में एकदम
खुश हुआ दिल तो लेकिन
कुछ अंजाने दुख भी मगर
दिल की खुशियों को ही थामा
अंजाने डर को दूर भगाया
लालन-पालन शुरू हुआ फिर
आंगन चहका बगिया महकी
बेटी का जीवन हंसता-खेलता
कोने में खड़ा वह बाप बेचारा
सपनों में बसा रहा सहारा
आंखों में चिंता मन में बोझ
बेटी की खुशियों का था सोच
खुद के अरमानों को बांध दिया
हर ख्वाहिश को ज़ंजीर डाल दिया
सिक्को को जोड़ते-जोड़ते सोचा
क्या बेटी का सपना भी बिका होगा
कुछ पैसों को बचा के रख लूं
दहेज जो बेटी का बना मैं सकूं
बेटी होती गई बड़ी और
दहेज के पैसे भी जुड़ते गये
पढ़-लिख बेटी जवान हुई
बेटी की शादी की बात चली
दहेज तो सारा बन ही चुका था
रिश्ता अब सिर्फ करना बचा था
लड़के आये कई बार मगर
बात मगर ना बन पाई
रस्मों रिवाजों की बात चले जब
दान दहेज की मांग उठी जब
संस्कारों से तकरार हुई तब
मेरी शिक्षा मेरे संस्कार
यही दहेज है साथ मेरे
बोलो अगर मंज़ूर तो यह
रिश्ता पक्का कर लें हम
लड़की बोली मगर खामोशी
बाप डर कर देख रहा था
चेहरा हर वह भांप रहा था
लड़का बोला तैयारी करो फिर
शुभ लगन की बेला फिर तो
चमके फिर तो चेहरे सब
दहेज अगर ना हो बगिया महके
हर आंगन में बेटी चहके
हर लगन फिर शुभ लगन हो
दहेज नहीं तो शादी तब हो....TheEnd
🖋️
आनलाइन मैग्ज़ीन के लिए लिखी गई यह कविता.... जहां पर टाइटल था "दहेज नहीं तो शादी नहीं" उसी टाइटल के आधार पर हमने यह कविता "शुभ लगन" लिखने की कोशिश की है।
दहेज जैसी प्रथा को हटाने के लिए एक सार्थक कदम की ज़रूरत है।
No comments:
Post a Comment