Wednesday, November 27, 2024

हम मिडिल क्लास वाले | Life of a Middle-Class Family | Middle-Class Emotions and Reality

 

हम मिडिल क्लास वाले.......

हम मिडिल क्लास वाले भी बड़े अजीब होते हैं 

दुख को छुपा के अपनी खुशियां दिखा जाते हैं हम


जेब खाली रहती है मगर बात लाखों की कर जाते हैं 

ज़मीं पर घर हो ना हो आसमां अपना बना लेते हैं हम


कल होगा आज से बेहतर यह सोच कर सो जाते हैं 

ख्वाहिशें को मार कर उम्मीद को ज़िंदा कर लेते हैं हम 


 कुछ कर अब लेंगे हम जोश कुछ ऐसा भरते हम हैं 

चिरागों का तो पता नहीं सूरज को हैं ललकारते हम


नींद रात भर फिर आती नहीं भूखे पेट सोते नहीं हैं

अच्छी नहीं लगती भिंडी फिर भी भर पेट खा लेते हम


सपने पूरे करने के लिए रात भर फिर सो जाते हम हैं 

दिन को फुर्सत है कहां सब काम ज़रुरी कर लेते हम 


कभी तमन्ना नई साड़ी की आंखो में सजा लेते हैं 

तनख्वाह हाथ आती तो फीस बच्चों की भर देते हम


और फिर अगले महीने कर-कर के सालों बीत जाते हैं 

कहां का शौक अब कुछ है दर्द फिर छिपा जाते हैं हम


नज़र जो पड़ती जूते पर तो खुद पर ही हंस लेते हैं 

किस्मत हंसती हम पर तो हंस लेते किस्मत पर हम


सितारे तोड़ लाने का नहीं कोई वादा करते हम हैं 

जो बीवी रूठ जाये तो मुहब्बत से मना लेते हैं हम 


हम मिडिल क्लास वाले भी बड़े अजीब होते हैं 

ज़िन्दा तो हैं रहते लेकिन अंदर ही अंदर मर जाते हम

-Little_Star



Friday, February 18, 2022

खामोश Love | poetry | Love poetry

  



जुदाई की वह रातें और तन्हाई बहुत अक्सर 

सुबह की वह उदासी और फिर शाम वह गमगीं 

मुहब्बत की ना कसमें हैं ना वादे हैं यहां कोई 

यहां तो दिल तड़पता है नज़र मिलती नहीं लेकिन 

मुहब्बत की मगर लपटें दहकती है यहां हरदम 

सितमगर ओ तेरा जाना और फिर तेरे आने तक 

मेरा वह राह तकना और फिर आस तकने तक 

तेरी फोटो कभी देखूं कभी देखूं तेरे फिर ख्वाब

तेरा है नाम लब पर तो ज़ुबां खामोश ओ हमदम

बहुत फिर याद तेरी आये और ना जाये तेरी जब याद

बहुत रोती हूं मैं तन्हा तुम्हें फिर याद कर-कर के 

आ जाओ ओ परदेसी मेरा अब जी नहीं लगता 

हैं लम्हें तो बहुत खाली सुकून मिलता नहीं फिर भी  

हां यह सच है बहुत परियां तुम्हारे गिर्द मंडराएं 

सभी चाहें तुम्हें पाना मगर तुम याद रखना यह

फलक का एक सितारा भी ज़मीं पर है तेरी खातिर 


-Little_Star




Wednesday, July 7, 2021

Akbar Ali

  




एक मसीहा ऐसा भी.....

लम्हों की ज़िंदगी में सदियों का जी गया.....

डॉक्टर अकबर अली, 

     हर इंसान का दुनिया में आना और जाना तय है, लेकिन यह कोई नहीं जानता है कि कौन कब आयोगा और कब जाएगा। आने जाने का तो पता नहीं लेकिन यह आने जाने के बीच की हमारी ज़िन्दगी हमारे ऊपर होती है कि हम इसको कैसे गुज़ारें। अक्सर हम अपनी ही उलझनों में उलझे रह जाते हैं। सही-गलत, नेकी-बदी इन सब चीज़ों को नज़रंदाज़ कर जाते हैं। 

       लेकिन आज भी दुनिया में कुछ ऐसे लोग हैं जो बहुत सारी बातों के साथ एक बात जो कि बहुत ज़रूरी है। याद रखते हैं, और वह है नेकी। 

     नेकी को आज हमने बहुत आम कर दिया है। जब की नेकी बहुत खास होनी चाहिए। नेकी वह नहीं जो दुनिया देखती है। बल्कि नेकी वह है जो सिर्फ खुदा देखे। क्योंकि नेकी वह है जो बंदे को खुदा से जोड़ती है।

       डॉक्टर और शिक्षक यह दो ऐसे नाम और काम हैं जिसमें नेकी और कमाई दोनों होती है। बस यह हमारे ऊपर होता है कि हम क्या-क्या कमाएं।

        डॉक्टर अकबर अली पेशे से डॉक्टर थे। लेकिन अपने पेशे से जितनी ईमानदारी करते थे यह हम में से शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे। आज जब डॉ अकबर अली साहेब हमारे बीच नहीं रहे तब बहुत सारी बातें जो कि हम उनके जीते जी नहीं जान पाए थे। वे आज उनके इंतेकाल के बाद हमको मालूम हो रही है। 

          मालूम हुआ कि डॉ अकबर अली ने एक अस्पताल को अपनी ज़िन्दगी के तीस साल दे दिये। जहां पर वह किसी भी काम के लिए किसी भी तरह का पैसा नहीं लेते थे। यह बहुत ही चौंकाने वाली खबर सामने आई है। जिसे सुनकर शायद हर कोई सिर्फ डाक्टर साहेब पर रश्क कर सकता है। मगर अफसोस आज हम उनके इस काम के लिए उनको मुबारक बाद नहीं दे सकते। डॉक्टर साहेब ने अपने पेशे को अपना ज़रीया-ए-मआश से साथ-साथ इबादत भी बना लिया।

      डॉक्टर साहेब ने इंसानियत की जो मिसाल पेश की है वह हमारे और आने वाली नस्लों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है। जिसके बिना पर हम आने वाली ज़िन्दगी को बेहतर तरीके से जी सकें।

     आज डाक्टरी जैसा मसीहाई पेशा जो रूप धारण कर चुका है वह बताने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन डॉक्टर अकबर अली जैसे लोगों की वजह से ही शायद आज दुनिया में अच्छाई ज़िंदा है। वरना आज ज़िन्दगी बचाने की लालच में हर दिन इंसानियत मर रही है। 


ज़िन्दगी रहते तो जी लेता है हर कोई दुनिया में

मौत के बाद दो-जहां जीने वाले हैं कम।

 


Tuesday, March 30, 2021

2021 | 2022 | 2021 New year | 2021 Life

  


दस्तक......

ज़िन्दगी गुज़र रही थी ऐसी कि जैसी हम चाहते ना थे। हंस-बोल रहे थे हम, खा-पी भी रहे थे हम। मगर कुछ अंदर का डर जो बाहर भी दिख रहा था। और फिर हम इंतेज़ार करने लगे किसे ऐसे का जो हमारी मुश्किल को दूर कर दे। और फिर तुम्हारे आने की आहट सुनाई दी। और हम इन्तेज़ार करने लगे तुम्हारी दस्तक का। क्योंकि तुम्हारी आहट हमको मिल गयी थी की तुम आने वाले हो। पता नहीं क्यों तुम्हारा ख्याल आते ही एक खुशी एक उम्मीद मन में जाग जाती थी। 

ज़िन्दगी में बहुत सारी परेशानी थी मगर कुछ आसानी भी थी। ज़िन्दगी बहुत अच्छी तो नहीं मगर बुरी भी नहीं गुज़र रही थी। हम सब साथ रहे थे। मगर एक खालीपन था। 

और फिर तुम्हारी वह आहट। हम तुम्हें अपने पास बुलाना चाहते थे। हम तुम्हारे साथ रहना चाहते थे। हम जीना चाहते थे तुम्हारे साथ। मगर हम को इंतेज़ार करना था तुम्हारा। क्योंकि तुम को आने में कुछ वक्त था। और हमको उस वक्त का इंतेज़ार था जब तुम आओगे। 

हम तुम्हारा स्वागत बहुत धूमधाम और हर्सोल्लास के साथ करना चाहते थे। मगर हम डर रहे थे। उस अनहोनी से जो पीछे हमारे साथ हो चुकी थी। हमको वह वक्त अभी भी याद है जब हमने उसका स्वागत बहुत ही जोश और खुशी से किया था। हमें उम्मीद थी कि वह हमारा साथ निभायेगा। मगर वह हमारे सोच के खिलाफ निकला। वह वैसा नहीं था जैसा हम चाहते थे। उसने हमारी ज़िन्दगी के हर पन्नों को उलट-पुलट कर दिया। और हम चाहते हुए भी कुछ ना कर सके। और हमें ना चाहते हुए भी उसके साथ रहना पड़ा।

और फिर वह हमारी ज़िन्दगी से धीरे-धीरे दूर होने लगा। हमको भी अब उसकी चाहत ना थी कोई। इसलिए हमने उसकी दूरी को महसूस नहीं किया। क्योंकि हमें तो तुम्हारा इंतज़ार थे। और हम तुम्हारा इंतज़ार बड़ी ही शिद्दत से कर रहे थे। 

क्योंकि तुम्हारे आने की आहट हमको मिल गयी थी। और हम इंतेज़ार कर रहे थे। तुम्हारी दस्तक का। 

और फिर इंतेज़ार ख़त्म हो गया। क्योंकि आज तुम हमारे साथ हो। तुमने दस्तक दे दी है हमारी ज़िन्दगी में। और तुम्हारी इस दस्तक का हम दिल से स्वागत करते हैं। और हम चाहते हैं कि हमारा और तुम्हारा साथ खुशियों भरा हो। हम दोनो मिलकर ज़िन्दगी की एक नई इबारत लिखें। तुम हमें इतनी खुशी दो कि हम उन बुरे दिनों को भूल जाएं। जो कभी हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा था। 

हम भूल जाएं ज़िन्दगी के हर दुख हर परेशानी। अब हमारी ज़िन्दगी में कोई दुख कोई परेशानी ना रहे। 

अब रहें तो सिर्फ़ मुहब्बत खुशी और सुकून और साथ रहें हम और तुम।

ऐ 2021 तुम्हारे पीछे नाजाने कितने आये और चले गये साल। कोई हमारे साथ हमेशा नहीं रहा। मगर कहते हैं ना यादें बड़ी हसीन होती हैं। हर साल अपने पीछे कुछ अच्छी यादें, तो कुछ बुरे लम्हे, ज़िन्दगी के तजुर्बे और बहुत सारी सीख हमको दे जाते हैं।

 हमें यकीन है कि हम तुम साथ बहुत खुश रहेंगे। हम यह भी नहीं कहते कि तुम सदा हमारे साथ रहो। मगर हम चाहते हैं। तुम हमारे साथ जितने दिन भी रहो। हमें खुशी और सुकून दो। 

Happy New year



 


Thursday, October 8, 2020

पैसा



सिर्फ पैसे की कमी ही गरीबी नहीं है.....

बात जब भी गरीबी की होती है। हमारी आंखों के सामने कुछ चेहरे, कुछ ज़िन्दगी, और कुछ लोगों की तस्वीर आ जाते हैं। जो कुछ मैले कपड़ों, गंदे चेहरे और कुछ अलग अंदाज़ में होते हैं। और उनको देखते ही मन में कुछ ख्यालात आते हैं कि अगर इनके पास 'पैसे' होते तो यह ऐसे ना दिखते। लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि सिर्फ 'पैसे' की कमी ही 'गरीबी' नहीं है। लेकिन यह बात हर जगह एक समान लागू नहीं होती है। क्योंकि हर इंसान के देखने समझने का नज़रिया एक समान नहीं होता। हर इंसान चीज़ों को अपनी सोच के हिसाब से देखता और समझता है। और यह ज़रूरी नहीं कि एक इंसान की सोच से दूसरा भी सहमत हो। और मेरी सोच के हिसाब से गरीबी तीन प्रकार की होती है।

1- गरीब की गरीबी

2- अमीर की गरीबी

3-दिल की गरीबी


1-गरीब की गरीबी:- 

इंसान जिस माहौल में रहता है। उसकी ज़िन्दगी उसी माहौल के हिसाब से गुज़रती है। जैसे बच्चा जब एक ऐसे परिवार में जन्म लेता है जहां रहने को घर नहीं, पहनने को कपड़े नहीं, और खाने को भर पेट भोजन नहीं। जन्म के बाद जैसे-जैसे वह बड़ा होता है। और उसके आसपास जिस तरह से सब रहते, पहनते और बोलते हैं। बच्चा भी वही सब सीखता जाता है। ऐसे परिवार में पैसों की कोई अहमियत नहीं होती। एक परिवार जहां 'पैसे' कमाने वाला एक हो और अगर एक दिन के लिए भी वह कमाने वाला बीमार हो जाए तो उस परिवार को भूखा सोना पड़ जाता है। और ऐसे परिवार का हर सदस्य इस ज़िन्दगी का आदी भी होता है। एक ऐसा परिवार जिस में बहुत सारे सदस्य हों और उनके रहने के लिए एक छोटा सा कमरा हो, कभी-कभी एक वक्त खाने को भी ना मिलता हो, बहुतों के शरीर पर अक्सर पूरे कपड़े भी नहीं होते लेकिन इन सब के बावजूद सब 'खुश' रहते हैं। अगर इन परिवारों में बच्चों को पढ़ाने के लिए 'पैसे' होते हैं तभी यह अपने बच्चों को पढ़ाते हैं वरना यह बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से खुशी-खुशी कोई भी मेहनत मज़दूरी वाला काम करने लगते हैं। और उनकी ज़िंदगी की तरह उनकी सोच भी उसी हिसाब से चलती रहती है। लेकिन ऐसी ही ज़िन्दगी जीने वाले कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी इस तरह की ज़िन्दगी को बदलने का सोचते हैं। और उनको अपनी ज़िंदगी बदलने के लिए सबसे पहले जिस चीज़ की ज़रूरत होती है वह है 'पैसा'। 

एक इंसान जो मज़दूरी करता है और वह बहुत मेहनत करने के बावजूद उतने पैसे नहीं कमा पाता है जिससे कि वह अपने परिवार के रहन-सहन, खान-पान, सेहत और शिक्षा पर खर्च कर सके। ऐसे में उस इंसान के मन में यही ख्याल आता है कि अगर उसके पास 'पैसे' होते तो वह एक अच्छी ज़िन्दगी जी रहा होता। वह इंसान जो बहुत चाहने के बावजूद भी अपनी ज़िंदगी नहीं बदल पाता। वह इंसान पैसे कमाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करता है जिसमें कभी जीतने के आस में वह इंसान टूट जाता है तो कभी हार जाता है। और अगर कोई जीत भी जाता है तो सिर्फ और सिर्फ 'पैसे' की वजह से। 

अमीर की गरीबी:-

एक इंसान जिस के पास रहने के लिए घर, पहनने के लिए कपड़े, अच्छा कोरोबार, खाने के लिए अच्छा खाना और ज़िन्दगी की हर सुख-सुविधा मौजूद हो, और वह इंसान एक सुकून भरी ज़िन्दगी जी रहा हो। और फिर अचानक से उसके कारोबार में नुकसान होने लगे। वह इंसान अपने कारोबार को बचाने की हर मुमकिन कोशिश करता है लेकिन उसके सामने सबसे पहले जो सबसे बड़ी परेशानी आती है वह होती है पैसे की दिक्कत।

क्योंकि उस इंसान का रहन-सहन जैसा होता है वह उसमें बदलाव नहीं चाहता और जैसी ज़िन्दगी वह जी रहा होता है। उसके लिए उसे चाहिए होता है 'पैसा'।

और फिर एक ऐसा परिवार जहां किसी भी तरह की कोई परेशानी कोई दिक्कत ना हो और फिर अचानक से बहुत सारी परेशानी आ जाए और उन सभी परेशानियों का सिर्फ एक हल हो और वह है 'पैसा'।

तो ऐसे में हम कह सकते हैं कि इस इंसान की गरीबी उस इंसान की गरीबी से ज़्यादा  मुश्किल है जिसे हम गरीब कहते हैं।


दिल की गरीबी:-

दिल की गरीबी बड़ी अजीब होती है इसको हर कोई समझ नहीं पाता है। जैसे एक इंसान जिस के पास सब कुछ होता है। लेकिन हर तरह की आशाइशों के बावजूद उस इंसान के पास सुकून नहीं होता, और ऐसे में वह इंसान  सोचता है कि काश! उसकी सारी दौलत कोई ले ले और उसको सुकून दे दे।

दिल की गरीबी उस औरत को देख कर महसूस की जा सकती है जिसके पास सब कुछ होता है लेकिन वह तरसती है एक ऐसे प्यार के लिए जो उसे समझ सके जो उसे प्यार कर सके।

दिल के गरीब अक्सर वही लोग होते हैं जिनके पास बहुत कुछ होता है मगर वह लोग हमेशा कुछ चीजों के लिए तरसते रहते हैं।

गरीबी के बहुत से चेहरे हैं लेकिन आज हम जिस समाज में जी रहे हैं और जिस तरह से हमारी सोच और विचार हैं उस हिसाब से सबसे बड़ी गरीबी 'पैसे' की कमी को समझते हैं।

 वह इंसान जो कम पैसा होने के बाद भी सुखी हो। लेकिन देखने वाले की नज़र में हमेशा 'बेचारा' ही रहता है।

कोई इंसान जब तरक्की करता है तो सबसे पहले उसके पास दौलत आती है। हर वह इंसान जो मेहनत करता है वह सिर्फ और सिर्फ पैसे के लिए मेहनत करता है। हां यह अलग बात हो सकती है कि कोई दो पैसे के लिए मेहनत करता है तो कोई चार पैसे के लिए। मगर वह मेहनत 'पैसे' कमाने के लिए ही करता है।

यह सच है कि सिर्फ पैसे की कमी ही'गरीबी'नहीं है। लेकिन आज पैसा हमारी ज़िन्दगी का एक अभिन्न अंग बन चुका है। जिस के बिना हम अक्सर बहुत मजबूर हो जाते हैं।

-Little_Star



Thursday, September 17, 2020

हौसलों की उड़ान



हौसलों से हारी मजबूरियां हज़ारों 



बात हौसलों की जब कहीं भी होती है

ज़िन्दगी आपकी आंखों में तैर जाती है


 65 साल की उम्र में हौसलों को दे रही नई ऊंचाईयां

कहते हैं जिनके हैसले बुलन्द होते हैं वह मुश्किलों में भी आसानियां ढूंढ लेते हैं। फिर वह मुश्किल शारिरिक हो या सामाजिक।

इन्हीं हौसलों की एक मिसाल हैं नईमा जी.......

नईमा जी जो किसी जमाने से इस ज़माने तक अपने हुनर को लेकर बहुत ही मशहूर हैं। बचपन से जिनको सिलाई कढ़ाई का शौक था। और उन का यह शौक सिर्फ शैक तक सीमित नहीं था। बल्कि वह बहुत ही बेहतरीन सिलाई कढ़ाई करती भी थीं। 

वक्त का पहिया चलता रहा। ज़िन्दगी खुशी, दुख और आज़माईशों का सफर तय करती हुई आगे बढ़ती रही। और इन्हीं सफर में जब नईमा जी के पति को एक के बाद एक कई बिमारियों ने घेर लिया। ऐसे वक्त में नईमा जी ने अपने हुनर को अपना पेशा बनाने का फैसला किया। और उन्होंने अपनी कढ़ाई के हुनर को चुना। लेकिन चूंकि हाथ की कढ़ाई में समय और मेहनत बहुत लगती है। इस लिए उन्होंने एक एंब्रॉयडरी मशीन खरीदी। और फिर उस पर एंब्रॉयडरी बनाना सीखा। किसी ट्रेनर या कोर्स के बिना।

और फिर शुरू हो गया उनका काम। जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया। लोग आते गये कस्टमर बढ़ते गये। और फिर उनका काम बढ़ता गया। आर्डर इतना ज़्यादा रहने लगा कि लोग दो-दो महीने पहले ही अपना कपड़ा देकर बुकिंग करा लेते थे। नईमा जी के हौसलों को उनके परिवार ने ही नहीं बल्कि समाज ने भी मान लिया था।

काम बढ़ने की वजह से उन्होंने कई एंब्रॉयडरी बनाने वाले कारीगर को रखा। लेकिन कारीगर उनके मन मुताबिक काम नहीं कर पाये। इस वजह से वह खुद ही एंब्रॉयडरी करती रहीं। उनकी कलर मैचिंग और डिज़ाइन के लोग दीवाने थे। क्योंकि वह बारीक से बारीक काम इतनी सफाई से करती थी कि देखने वाला हैरान रह जाता कि यह कम्प्यूटर एंब्रॉयडरी नहीं बल्कि हैंड एंब्रॉयडरी है।

वक्त चलता रहा ज़िन्दगी गुज़रती रही। हर मुश्किलों को नईमा जी अपनी समझदारी और हौसलों से पार करती रहीं।

लेकिन शायद इम्तिहान अभी और थे। कुदरत को नईमा जी को अभी और आज़माना था। 

और फिर नईमा जी को फालिज (paralysis) का अटैक आया। जिसकी वजह से उनका शरीर सुन्न हो गया। लेकिन यह शायद उनका हौसला ही था कि जो वह  इतनी बड़ी बीमारी से बड़े ही हौसलों से लड़ी। क्योंकि डाक्टर को भी पूरी उम्मीद नहीं थी कि यह अब ठीक होंगी भी की नहीं। लेकिन यह शायद नईमा जी की उम्मीद और अल्लाह पर यकीन ही तो था जो नईमा जी को मौत से ज़िन्दगी की तरफ ले आयी। आज भी उनका एक हाथ काम नहीं करता। लेकिन यह नईमा जी का ही हौसला है जो हमेशा शुक्र गुज़ार रहती हैं कि एक हाथ काम नहीं कर रहा तो क्या हुआ दूसरा हाथ तो कर रहा है।

और आज चौदह साल बाद 65 साल की उम्र में नईमा जी ने अपने खाली वक्त को सदुपयोग करते हुए फिर अपने हौसलों से अपना काम शुरू किया। और आज वह शिशुओं (infant) के बहुत ही खूबसूरत और बेहतरीन बिस्तर का सेट बच्चों की टॉवल और बोतल कवर से लेकर बच्चों के जूते और चप्पल जो कि बहुत ही खूबसूरत डिजाइन में हर चीज़ तैयार करवाती हैं। और इसको सेल करती हैं। जिसकी डिजाइनिंग और कटिंग वह खुद करती हैं। एक हाथ से काम करती हैं। मगर यर एक हाथ चार हाथ के समान है। इंचीटेप से कपड़ा नापने में दिक्कत होने पर स्केल से कपड़ों को नापती हैं। 

और आज नईमा जी के इस काम से बहुत सी ऐसी महिलाएं जुड़ गयी हैं। जिनके पास कोई काम नहीं था। आज उनके साथ जुड़ी औरतों को ना सिर्फ रोज़गार मिल रहा है। बल्कि नईमा जी के साथ काम करते हुए बहुत कुछ सीखने के साथ-साथ उन औरतों में हौसला और हिम्मत भी आई है। जो शायद बड़ी बड़ी फीस देकर भी कोई नहीं सीख सकता।

सलाम है नईमा जी के हौसलों को जिन्होंने दिखा दिया कि मजबूरियां जितनी भी बड़ी क्यों ना हो हौसलों से हार ही जाती हैं।









Friday, September 4, 2020

जीत आपकी | PUBG | PUBG banned in India | PUBG News | game Zone

 




 जीत आपकी.........


गेम क्या है?

गेम ज़िन्दगी है?

गेम हम क्यों खेलते हैं?

गेम खुशी है?

गेम दोस्त है?

गेम को कभी ज़िन्दगी का हिस्सा माना जाता था। 

बच्चों को गेम खेलने के लिए कहा जाता था।

अक्सर बच्चे और बड़े मिलकर भी गेम खेलते थे।

वक्त के साथ सब बदल जाता है। यह हम और आप अक्सर सुनते हैं। लेकिन आज हम देखते हैं कि वक्त के साथ चीजें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं। 

कल गेम क्या था? और क्यों खेलते थे?

कल के गेम में खुशी, तन्दुरूस्ती और मां-बाप का साथ था। शाम हुई नहीं कि बच्चे और बड़े सब कहीं मैदान में, घर के आंगन में या छत पर इकट्ठा हो जाते और गेम शुरू हो जाता था। उस वक्त गेम को गेम कम और खेल ज़्यादा कहा जाता था। कभी आई-स्पाई तो कभी कबड्डी तो कभी कुछ, कुछ समझ नहीं आ रहा तो रेस ही कर लेते। इस के इलावा ताश, लूडो, कैरम तो रोज़ का गेम था ही। कुछ नहीं तो चार लोग एक-एक पेपर लेकर बैठ गये। और उस पेपर पर नाम, शहर, खाना, फिल्म टाइटल देते। गेम का नियम यह था कि चारों खेलने वालों में से एक-एक लोग बारी बारी कोई शब्द बोलेंगे और उस शब्द से सबको हर कॉलम में लिखना रहता था। और उसका एक वक्त होता था कि इतने देर में जो जितना लिख ले उसी हिसाब से उसको प्वाइंट मिलता था। खेलते वक्त मज़ा तो आता ही था बच्चे बहुत कुछ सीख भी लेते थे।



वक्त के साथ-साथ गेम भी बदलते रहे। और उन गेमों ने बहुत आसानी से हमारी ज़िन्दगी में जगह बना ली।

लेकिन फिर गेम बदलते-बदलते हमारी ज़िन्दगी ही बदल गयी। कल जो हम खुली हवा में आसमान के नीचे गेम खेलने के साथ-साथ अपनी सेहत भी बना रहे थे। वहीं आज हम बंद कमरों में अपनी सेहत के साथ-साथ अपनी सोच को भी बिगाड़ रहे हैं।

 जहां दो से चार लोग इकट्ठा हुए नहीं कि गेम शुरू। कल के मां-बाप को भी बच्चों को गेम खेलते देख फ़िक्र नहीं होती थी। जैसे कि आज रहती है।

वक्त बदला गेम बदला। आज गेमों की दुनिया हमको किस खतरनाक मोड़ पर ले आयी है यह हम सब बहुत अच्छे से जानते हैं। लेकिन बहुत कुछ जानने के बावजूद भी आज हम इतने मजबूर क्यों हैं। यह सबसे बड़ा विषय है।

पबजी गेम जिसके छोटे बड़े बहुत से दीवाने हैं। 



पबजी क्या है? एक आईलैंड जिस पर आप को रहना है। खुद को बचाना भी है और दूसरों को मारना भी है। जिस में एक सेफ जोन होता है। जो धीरे-धीरे कम होते हुए खत्म हो जाता है। उस सेफ जोन को खत्म होने से पहले आप को विजयी होना होता है। और गेम के दीवाने उस झूठी जीत के लिए ना जाने कितनी सच्ची खुशयों को कुर्बान कर देते हैं।

पबजी जैसा गेम बनाने वाले ने क्या सोच कर यह गेम बनाया था। यह बनाने के पीछे बनाने वाले का मकसद क्या था। यह तो बनाने वाला ही सही बता सकता है। लेकिन बनाने वाले ने अच्छी चीज़ नहीं बनायी। यह हम कह सकते हैं। 



पबजी भारत में बैन होने से जहां एक वर्ग में उदासी और दुःख है। तो वही दूसरी तरफ खुशी और सुकून भी है।

पबजी को खेलने वाले उसको खेलते समय उसमें इस तरह खो जाते थे कि उन्हें अपने आसपास की भी खबर नहीं होती थी। वह उसी दुनिया के हो कर रह जाते थे। जो दुनिया उनके लिए थी ही नहीं।

आज पबजी के बैन के बाद उसके खेलने वाले उदास और दुःखी हैं। लेकिन ऐसा क्यों है। कि पबजी खेलने वालों के आसपास रहने वाले लोग आज पबजी बैन हो जाने से खुश हैं। आज पबजी के बैन की वजह से बच्चों को दुखी देखकर भी मां बाप खुश हैं। कहते हैं मां बाप बच्चों को दुखी नहीं देख सकते। और वह बच्चों की हर मुराद पूरी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन पबजी के बैन से आज मां बाप दुखी नहीं हैं। क्योंकि मां बाप जानते हैं कि आज का यह दुख बच्चों के कल के लिए बेहतर है।

गेम तो मन में ताज़गी और माहौल में खुशी लाता है। लेकिन पबजी जैसा गेम इंसान को थका देता है। खेलने वाले उस गेम ज़ोन से निकल ही नहीं पाता जो ज़ोन उसके किसी काम का नहीं।

क्यों आज पबजी जैसे गेम की वजह से हर रिश्ता प्राभावित है?

क्यों आज पबजी जैसे गेम की वजह से हम हार रहे हैं?

क्यों आज हम पबजी जैसे गेम के आगे हार रहे हैं?

क्या आज हमारे आस-पास कोई ऐसा गेम नहीं जिसको हम कुछ देर खेल कर खत्म कर दें?




आज एक पबजी के बैन होने से ऐसा नहीं है कि पबजी जैसे गेम अब हमारी ज़िन्दगी में नहीं आयेंगे। यह सिलसिला अब खत्म होने वाला नहीं। लेकिन पबजी जैसे गेम से हमको अपने को और अपनों को कैसे बचाना है। यह सबसे बड़ा विषय है। 

जीतने की ललक ज़िन्दगी में हो, हारने का डर किसी को ना हो।

गेम खेलें और जीतने की कोशिश भी करें। मगर ध्यान रहे गेम को जीतने में रिश्तों को ना हार जाए।

आज पबजी बैन हो गया तो क्या हुआ। आज भी बहुत सारे गेम हैं। जिनको हम पीछे छोड़ आये हैं। ज़रा एक बार उन गेमों को याद तो करें।

बारिश का पानी काग़ज़ की कश्ती को आज भी ढूंढता होगा। जो कभी बरसात में तैरती थी हमारी वजह से।

पंखे की हवा उन जहाज़ों को कैसे भूल सकता है जो कभी हम अपनी भरी हुई कापी के पन्नों को फ़ाड़ कर बनाते और बड़े शान से उनको उड़ाते थे।

वह रूमाल से आंखों को ढंक कर दोस्तों को पकड़ना, तो कभी कुछ ना समझ आने पर चिड़िया उड़ खेल खेलते हुए नाजाने कितने ही ऐसे जानवरों को भी उड़ा देते जो उड़ना नहीं जानते। और फिर इन छोटी-छोटी बातों पे बड़े-बड़े कहकहे लगा कर ना जाने कितने दुखों को हरा जाते थे। और जीत लेते थे वह हकीकी खुशी जो कभी हमें दुखी नहीं कर सकती।












Sunday, August 30, 2020

Rickshe wale |





रिक्शेवाले.....

कोशिश करके थक गयी वह
हार के घर जा रही थी वह
मन में निराशा,आंख में आंसू
बोझल मन से रिक्शे पे बैठी
रिक्शा चला, और आगे बढ़ा जो
अपनी निराशा और थकन को
भूल के वह बस तकती रह गई
एक बुजुर्ग की वह मेहतन
जो रिक्शा चला कर हो रही
लेकिन फिर भी मेहनत वह
करना उनकी मजबूरी है
ऐसा कैसे सोच यह हम ले
क्योंकि समझें हम मजबूरी जिसको
मजबूरी को फ़र्ज़ समझ कर
करना उनकी आदत है।
पहुंचे जब तक हम घर तक
मन की निराशा छट गई थी
उम्मीदों की एक किरण को
रिक्शे वाले ने जला फिर दी
कोशिश करना तब तक है
कामयाबी ना मिल जाए जब तक की


#Little_Star

Chadwick Boseman | चैडविक बोसमेन |

 








Little_Star | Life | Love Poetry | Sad Poetry |





मैं और वह


कभी खामोश रहती थी कभी वह रूठ जाती थी
मेरी बातों से ‌वह अक्सर बहुत ही टूट जाती थी

कभी मैं सोचता ही रह जाता और वह कर गुज़रती थी
मेरी आदत पे वह अक्सर बहुत अफसोस करती थी

कभी आती जो मुश्किल तो वह मज़बूत हो जाती 
मेरी कमज़ोरियों पे अक्सर वह बहुत गमगीन हो जाती

कभी करते मुहब्बत हम यह बातें वह ही कहती थी
मेरे अब के रवैए पर वह अक्सर रो भी देती थी

कभी जिससे हमारे हर तरफ खुशियां ही रहती थी
हज़ारों गम उसे देकर भी मैं अक्सर शाद रहता था

कभी करते बहुत परवाह ऐसा वह ही कहती थी
मेरी बेपरवाहियों से अक्सर वह बहुत मायूस हो जाती

कभी पीसी कभी टीवी कभी फोन पर ही मैं
लगा रहता मज़े लेता और खुश हो रहा होता

कभी कहता था उसको जान मगर फिर भी मैं
उन्हीं बेजान चीजों में मैं अपना वक्त गंवाता था

कभी खाना वह खाती थी मेरे रहते भी तन्हा वह
मैं अब तन्हा बहुत उसकी तन्हाई याद करता हूं

कभी बाहों के तकिए को तरसती वह बहुत रहती
मेरी आगोश अब अक्सर उन्हें फिर याद करती हैं

कभी समझा नहीं उसको कभी ना वक्त दिया उसको
मेरी नज़रें मेरा दिल चाहता अब अक्सर उससे मिलने को

कभी वह थी मगर हमने दिया उसको ना साथ अपना
अभी अक्सर ना जाने क्यूं मेरा दिल साथ तेरा चाहे

कभी जिससे वफा ना कि कभी जिसकी ना कि परवाह
मेरी नज़रें उसे अक्सर ना जाने खोजती क्यूं हैं

कभी रहती थी मेरे पास मेरा साया सा बन कर जो
वह अब अक्सर मुझे मिलने ख्वाबों में भी नहीं आती

कभी जीती थी वह मर-मर के और मैं खामोश रहता था
वह अब मर के भी ज़िंदा है और मैं जी के भी मरता हूं

कभी कोई सितारा आसमां पर जब भी दिखता है
मुझे अपना सितारा वह बहुत फिर याद आता है

-Little-Star












Sunday, August 16, 2020

When was the first search engine invented?

The first few hundred web sites began in 1993 and most of them were at colleges, but long before most of them existed came Archie. The first search engine created was Archie, created in 1990 by Alan Emtage, a student at McGill University in Montreal.

How many people in the world are over 100 years old?

A growing number of Americans are living to age 100. Nationwide, the centenarian population has grown 65.8 percent over the past three decades, from 32,194 people who were age 100 or older in 1980 to 53,364 centenarians in 2010, according to new Census Bureau data.

Wednesday, July 29, 2020

Kahan Se Kahan | Unlock Stories | Unlock Poetry | Lockdown Poetry | लॉकडाउन की हकीकत | लॉकडाउन से अनलॉक तक क्या हुआ | Lockdown To Unlock | लॉकडाउन से अनलॉक तक | Little_Star



कहां से कहां






कहां कि वक्त नहीं था आज के लिए
कहां की हर आज यूं ही कल हो रहा
कहां कि फ़िक्र थी हर आने वाले कल की
कहां कि हर रोज़ गुज़रा हुआ कल हो रहा
कहां कि फुरसत नहीं थी रूकने की
कहां कि ठहर गयी ज़िन्दगी सब की
कहां कि हम रोज़ कमाते थे खाने के लिए
कहां कि हर रोज़ खा रहे हैं मगर बिना कमाये ही
कहां कि हम परेशान रहते थे कपड़े और ज्वेलरी के लिए
कहां कि दो कपड़ों में गुज़र रही ज़िन्दगी सबकी
कहां कि रोज़ मिलते थे यारों से अज़ीज़ों से
कहां कि मिलना-मिलाना एक ख्वाब हो गया
कहां कि तरसते थे एक छुट्टी को पाने के लिए
कहां कि राहे बना रहे छुट्टी की छुट्टी करने के लिए
कहां कि तरस रहे थे अपनों के लिए घर के लिए
कहां कि वह अपने ही कह रहे काम पे जाने के लिए
कहां कि शिकायत थी सबको कि हम देते नहीं वक्त
कहां कि आज सबको यही वक्त अखर रहा है
कहां कि वह एक झप्पी भुलाती थी वह दुख सारे
कहां कि वह झप्पी अब डर जो है कोरोना का
कहां कि बिना मिले दोस्तों से दिन नहीं कटता
कहां कि दोस्तों से बिना मिले ही जी रहे हैं हम
कहां कि बहुत कुछ था कभी पाने के लिए
कहां कि आज हर दिन ही कुछ खो रहे अपना
कहां कि तरसते थे हम घर में रहने के लिए
कहां कि बेचैन हैं बहुत घर से निकलने के लिए
कहां कि लॉंग ड्राइव एक आदत में शामिल था
कहां कि दो कदम चलते भी डर लगता है
कहां कि एक रूटीन थी कभी दिन महीनों की
कहां कि वह आदत अब और कहां की वह दिनचर्या
कहां कि बहुत थक जाते थे कामों को करते-करते
कहां कि तरस रहे हैं कामों को करने के लिए
कहां कि नींद भर सो नहीं पाते थे काम की वजह से
कहां कि आज जाग रहे हैं कामों की फ़िक्र में 
कहां कि सबको शिकायत सभी से थी 
कहां कि आज सबको शिकायत है वक्त से
कहां कि हम सोचते थे हम चल रहे वक्त के साथ
कहां कि आज वक्त यूं ही अकेला ही चल रहा

-Little-Star