Thursday, October 8, 2020

पैसा



सिर्फ पैसे की कमी ही गरीबी नहीं है.....

बात जब भी गरीबी की होती है। हमारी आंखों के सामने कुछ चेहरे, कुछ ज़िन्दगी, और कुछ लोगों की तस्वीर आ जाते हैं। जो कुछ मैले कपड़ों, गंदे चेहरे और कुछ अलग अंदाज़ में होते हैं। और उनको देखते ही मन में कुछ ख्यालात आते हैं कि अगर इनके पास 'पैसे' होते तो यह ऐसे ना दिखते। लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि सिर्फ 'पैसे' की कमी ही 'गरीबी' नहीं है। लेकिन यह बात हर जगह एक समान लागू नहीं होती है। क्योंकि हर इंसान के देखने समझने का नज़रिया एक समान नहीं होता। हर इंसान चीज़ों को अपनी सोच के हिसाब से देखता और समझता है। और यह ज़रूरी नहीं कि एक इंसान की सोच से दूसरा भी सहमत हो। और मेरी सोच के हिसाब से गरीबी तीन प्रकार की होती है।

1- गरीब की गरीबी

2- अमीर की गरीबी

3-दिल की गरीबी


1-गरीब की गरीबी:- 

इंसान जिस माहौल में रहता है। उसकी ज़िन्दगी उसी माहौल के हिसाब से गुज़रती है। जैसे बच्चा जब एक ऐसे परिवार में जन्म लेता है जहां रहने को घर नहीं, पहनने को कपड़े नहीं, और खाने को भर पेट भोजन नहीं। जन्म के बाद जैसे-जैसे वह बड़ा होता है। और उसके आसपास जिस तरह से सब रहते, पहनते और बोलते हैं। बच्चा भी वही सब सीखता जाता है। ऐसे परिवार में पैसों की कोई अहमियत नहीं होती। एक परिवार जहां 'पैसे' कमाने वाला एक हो और अगर एक दिन के लिए भी वह कमाने वाला बीमार हो जाए तो उस परिवार को भूखा सोना पड़ जाता है। और ऐसे परिवार का हर सदस्य इस ज़िन्दगी का आदी भी होता है। एक ऐसा परिवार जिस में बहुत सारे सदस्य हों और उनके रहने के लिए एक छोटा सा कमरा हो, कभी-कभी एक वक्त खाने को भी ना मिलता हो, बहुतों के शरीर पर अक्सर पूरे कपड़े भी नहीं होते लेकिन इन सब के बावजूद सब 'खुश' रहते हैं। अगर इन परिवारों में बच्चों को पढ़ाने के लिए 'पैसे' होते हैं तभी यह अपने बच्चों को पढ़ाते हैं वरना यह बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से खुशी-खुशी कोई भी मेहनत मज़दूरी वाला काम करने लगते हैं। और उनकी ज़िंदगी की तरह उनकी सोच भी उसी हिसाब से चलती रहती है। लेकिन ऐसी ही ज़िन्दगी जीने वाले कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी इस तरह की ज़िन्दगी को बदलने का सोचते हैं। और उनको अपनी ज़िंदगी बदलने के लिए सबसे पहले जिस चीज़ की ज़रूरत होती है वह है 'पैसा'। 

एक इंसान जो मज़दूरी करता है और वह बहुत मेहनत करने के बावजूद उतने पैसे नहीं कमा पाता है जिससे कि वह अपने परिवार के रहन-सहन, खान-पान, सेहत और शिक्षा पर खर्च कर सके। ऐसे में उस इंसान के मन में यही ख्याल आता है कि अगर उसके पास 'पैसे' होते तो वह एक अच्छी ज़िन्दगी जी रहा होता। वह इंसान जो बहुत चाहने के बावजूद भी अपनी ज़िंदगी नहीं बदल पाता। वह इंसान पैसे कमाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करता है जिसमें कभी जीतने के आस में वह इंसान टूट जाता है तो कभी हार जाता है। और अगर कोई जीत भी जाता है तो सिर्फ और सिर्फ 'पैसे' की वजह से। 

अमीर की गरीबी:-

एक इंसान जिस के पास रहने के लिए घर, पहनने के लिए कपड़े, अच्छा कोरोबार, खाने के लिए अच्छा खाना और ज़िन्दगी की हर सुख-सुविधा मौजूद हो, और वह इंसान एक सुकून भरी ज़िन्दगी जी रहा हो। और फिर अचानक से उसके कारोबार में नुकसान होने लगे। वह इंसान अपने कारोबार को बचाने की हर मुमकिन कोशिश करता है लेकिन उसके सामने सबसे पहले जो सबसे बड़ी परेशानी आती है वह होती है पैसे की दिक्कत।

क्योंकि उस इंसान का रहन-सहन जैसा होता है वह उसमें बदलाव नहीं चाहता और जैसी ज़िन्दगी वह जी रहा होता है। उसके लिए उसे चाहिए होता है 'पैसा'।

और फिर एक ऐसा परिवार जहां किसी भी तरह की कोई परेशानी कोई दिक्कत ना हो और फिर अचानक से बहुत सारी परेशानी आ जाए और उन सभी परेशानियों का सिर्फ एक हल हो और वह है 'पैसा'।

तो ऐसे में हम कह सकते हैं कि इस इंसान की गरीबी उस इंसान की गरीबी से ज़्यादा  मुश्किल है जिसे हम गरीब कहते हैं।


दिल की गरीबी:-

दिल की गरीबी बड़ी अजीब होती है इसको हर कोई समझ नहीं पाता है। जैसे एक इंसान जिस के पास सब कुछ होता है। लेकिन हर तरह की आशाइशों के बावजूद उस इंसान के पास सुकून नहीं होता, और ऐसे में वह इंसान  सोचता है कि काश! उसकी सारी दौलत कोई ले ले और उसको सुकून दे दे।

दिल की गरीबी उस औरत को देख कर महसूस की जा सकती है जिसके पास सब कुछ होता है लेकिन वह तरसती है एक ऐसे प्यार के लिए जो उसे समझ सके जो उसे प्यार कर सके।

दिल के गरीब अक्सर वही लोग होते हैं जिनके पास बहुत कुछ होता है मगर वह लोग हमेशा कुछ चीजों के लिए तरसते रहते हैं।

गरीबी के बहुत से चेहरे हैं लेकिन आज हम जिस समाज में जी रहे हैं और जिस तरह से हमारी सोच और विचार हैं उस हिसाब से सबसे बड़ी गरीबी 'पैसे' की कमी को समझते हैं।

 वह इंसान जो कम पैसा होने के बाद भी सुखी हो। लेकिन देखने वाले की नज़र में हमेशा 'बेचारा' ही रहता है।

कोई इंसान जब तरक्की करता है तो सबसे पहले उसके पास दौलत आती है। हर वह इंसान जो मेहनत करता है वह सिर्फ और सिर्फ पैसे के लिए मेहनत करता है। हां यह अलग बात हो सकती है कि कोई दो पैसे के लिए मेहनत करता है तो कोई चार पैसे के लिए। मगर वह मेहनत 'पैसे' कमाने के लिए ही करता है।

यह सच है कि सिर्फ पैसे की कमी ही'गरीबी'नहीं है। लेकिन आज पैसा हमारी ज़िन्दगी का एक अभिन्न अंग बन चुका है। जिस के बिना हम अक्सर बहुत मजबूर हो जाते हैं।

-Little_Star



Thursday, September 17, 2020

हौसलों की उड़ान



हौसलों से हारी मजबूरियां हज़ारों 



बात हौसलों की जब कहीं भी होती है

ज़िन्दगी आपकी आंखों में तैर जाती है


 65 साल की उम्र में हौसलों को दे रही नई ऊंचाईयां

कहते हैं जिनके हैसले बुलन्द होते हैं वह मुश्किलों में भी आसानियां ढूंढ लेते हैं। फिर वह मुश्किल शारिरिक हो या सामाजिक।

इन्हीं हौसलों की एक मिसाल हैं नईमा जी.......

नईमा जी जो किसी जमाने से इस ज़माने तक अपने हुनर को लेकर बहुत ही मशहूर हैं। बचपन से जिनको सिलाई कढ़ाई का शौक था। और उन का यह शौक सिर्फ शैक तक सीमित नहीं था। बल्कि वह बहुत ही बेहतरीन सिलाई कढ़ाई करती भी थीं। 

वक्त का पहिया चलता रहा। ज़िन्दगी खुशी, दुख और आज़माईशों का सफर तय करती हुई आगे बढ़ती रही। और इन्हीं सफर में जब नईमा जी के पति को एक के बाद एक कई बिमारियों ने घेर लिया। ऐसे वक्त में नईमा जी ने अपने हुनर को अपना पेशा बनाने का फैसला किया। और उन्होंने अपनी कढ़ाई के हुनर को चुना। लेकिन चूंकि हाथ की कढ़ाई में समय और मेहनत बहुत लगती है। इस लिए उन्होंने एक एंब्रॉयडरी मशीन खरीदी। और फिर उस पर एंब्रॉयडरी बनाना सीखा। किसी ट्रेनर या कोर्स के बिना।

और फिर शुरू हो गया उनका काम। जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया। लोग आते गये कस्टमर बढ़ते गये। और फिर उनका काम बढ़ता गया। आर्डर इतना ज़्यादा रहने लगा कि लोग दो-दो महीने पहले ही अपना कपड़ा देकर बुकिंग करा लेते थे। नईमा जी के हौसलों को उनके परिवार ने ही नहीं बल्कि समाज ने भी मान लिया था।

काम बढ़ने की वजह से उन्होंने कई एंब्रॉयडरी बनाने वाले कारीगर को रखा। लेकिन कारीगर उनके मन मुताबिक काम नहीं कर पाये। इस वजह से वह खुद ही एंब्रॉयडरी करती रहीं। उनकी कलर मैचिंग और डिज़ाइन के लोग दीवाने थे। क्योंकि वह बारीक से बारीक काम इतनी सफाई से करती थी कि देखने वाला हैरान रह जाता कि यह कम्प्यूटर एंब्रॉयडरी नहीं बल्कि हैंड एंब्रॉयडरी है।

वक्त चलता रहा ज़िन्दगी गुज़रती रही। हर मुश्किलों को नईमा जी अपनी समझदारी और हौसलों से पार करती रहीं।

लेकिन शायद इम्तिहान अभी और थे। कुदरत को नईमा जी को अभी और आज़माना था। 

और फिर नईमा जी को फालिज (paralysis) का अटैक आया। जिसकी वजह से उनका शरीर सुन्न हो गया। लेकिन यह शायद उनका हौसला ही था कि जो वह  इतनी बड़ी बीमारी से बड़े ही हौसलों से लड़ी। क्योंकि डाक्टर को भी पूरी उम्मीद नहीं थी कि यह अब ठीक होंगी भी की नहीं। लेकिन यह शायद नईमा जी की उम्मीद और अल्लाह पर यकीन ही तो था जो नईमा जी को मौत से ज़िन्दगी की तरफ ले आयी। आज भी उनका एक हाथ काम नहीं करता। लेकिन यह नईमा जी का ही हौसला है जो हमेशा शुक्र गुज़ार रहती हैं कि एक हाथ काम नहीं कर रहा तो क्या हुआ दूसरा हाथ तो कर रहा है।

और आज चौदह साल बाद 65 साल की उम्र में नईमा जी ने अपने खाली वक्त को सदुपयोग करते हुए फिर अपने हौसलों से अपना काम शुरू किया। और आज वह शिशुओं (infant) के बहुत ही खूबसूरत और बेहतरीन बिस्तर का सेट बच्चों की टॉवल और बोतल कवर से लेकर बच्चों के जूते और चप्पल जो कि बहुत ही खूबसूरत डिजाइन में हर चीज़ तैयार करवाती हैं। और इसको सेल करती हैं। जिसकी डिजाइनिंग और कटिंग वह खुद करती हैं। एक हाथ से काम करती हैं। मगर यर एक हाथ चार हाथ के समान है। इंचीटेप से कपड़ा नापने में दिक्कत होने पर स्केल से कपड़ों को नापती हैं। 

और आज नईमा जी के इस काम से बहुत सी ऐसी महिलाएं जुड़ गयी हैं। जिनके पास कोई काम नहीं था। आज उनके साथ जुड़ी औरतों को ना सिर्फ रोज़गार मिल रहा है। बल्कि नईमा जी के साथ काम करते हुए बहुत कुछ सीखने के साथ-साथ उन औरतों में हौसला और हिम्मत भी आई है। जो शायद बड़ी बड़ी फीस देकर भी कोई नहीं सीख सकता।

सलाम है नईमा जी के हौसलों को जिन्होंने दिखा दिया कि मजबूरियां जितनी भी बड़ी क्यों ना हो हौसलों से हार ही जाती हैं।









Friday, September 4, 2020

जीत आपकी | PUBG | PUBG banned in India | PUBG News | game Zone

 




 जीत आपकी.........


गेम क्या है?

गेम ज़िन्दगी है?

गेम हम क्यों खेलते हैं?

गेम खुशी है?

गेम दोस्त है?

गेम को कभी ज़िन्दगी का हिस्सा माना जाता था। 

बच्चों को गेम खेलने के लिए कहा जाता था।

अक्सर बच्चे और बड़े मिलकर भी गेम खेलते थे।

वक्त के साथ सब बदल जाता है। यह हम और आप अक्सर सुनते हैं। लेकिन आज हम देखते हैं कि वक्त के साथ चीजें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं। 

कल गेम क्या था? और क्यों खेलते थे?

कल के गेम में खुशी, तन्दुरूस्ती और मां-बाप का साथ था। शाम हुई नहीं कि बच्चे और बड़े सब कहीं मैदान में, घर के आंगन में या छत पर इकट्ठा हो जाते और गेम शुरू हो जाता था। उस वक्त गेम को गेम कम और खेल ज़्यादा कहा जाता था। कभी आई-स्पाई तो कभी कबड्डी तो कभी कुछ, कुछ समझ नहीं आ रहा तो रेस ही कर लेते। इस के इलावा ताश, लूडो, कैरम तो रोज़ का गेम था ही। कुछ नहीं तो चार लोग एक-एक पेपर लेकर बैठ गये। और उस पेपर पर नाम, शहर, खाना, फिल्म टाइटल देते। गेम का नियम यह था कि चारों खेलने वालों में से एक-एक लोग बारी बारी कोई शब्द बोलेंगे और उस शब्द से सबको हर कॉलम में लिखना रहता था। और उसका एक वक्त होता था कि इतने देर में जो जितना लिख ले उसी हिसाब से उसको प्वाइंट मिलता था। खेलते वक्त मज़ा तो आता ही था बच्चे बहुत कुछ सीख भी लेते थे।



वक्त के साथ-साथ गेम भी बदलते रहे। और उन गेमों ने बहुत आसानी से हमारी ज़िन्दगी में जगह बना ली।

लेकिन फिर गेम बदलते-बदलते हमारी ज़िन्दगी ही बदल गयी। कल जो हम खुली हवा में आसमान के नीचे गेम खेलने के साथ-साथ अपनी सेहत भी बना रहे थे। वहीं आज हम बंद कमरों में अपनी सेहत के साथ-साथ अपनी सोच को भी बिगाड़ रहे हैं।

 जहां दो से चार लोग इकट्ठा हुए नहीं कि गेम शुरू। कल के मां-बाप को भी बच्चों को गेम खेलते देख फ़िक्र नहीं होती थी। जैसे कि आज रहती है।

वक्त बदला गेम बदला। आज गेमों की दुनिया हमको किस खतरनाक मोड़ पर ले आयी है यह हम सब बहुत अच्छे से जानते हैं। लेकिन बहुत कुछ जानने के बावजूद भी आज हम इतने मजबूर क्यों हैं। यह सबसे बड़ा विषय है।

पबजी गेम जिसके छोटे बड़े बहुत से दीवाने हैं। 



पबजी क्या है? एक आईलैंड जिस पर आप को रहना है। खुद को बचाना भी है और दूसरों को मारना भी है। जिस में एक सेफ जोन होता है। जो धीरे-धीरे कम होते हुए खत्म हो जाता है। उस सेफ जोन को खत्म होने से पहले आप को विजयी होना होता है। और गेम के दीवाने उस झूठी जीत के लिए ना जाने कितनी सच्ची खुशयों को कुर्बान कर देते हैं।

पबजी जैसा गेम बनाने वाले ने क्या सोच कर यह गेम बनाया था। यह बनाने के पीछे बनाने वाले का मकसद क्या था। यह तो बनाने वाला ही सही बता सकता है। लेकिन बनाने वाले ने अच्छी चीज़ नहीं बनायी। यह हम कह सकते हैं। 



पबजी भारत में बैन होने से जहां एक वर्ग में उदासी और दुःख है। तो वही दूसरी तरफ खुशी और सुकून भी है।

पबजी को खेलने वाले उसको खेलते समय उसमें इस तरह खो जाते थे कि उन्हें अपने आसपास की भी खबर नहीं होती थी। वह उसी दुनिया के हो कर रह जाते थे। जो दुनिया उनके लिए थी ही नहीं।

आज पबजी के बैन के बाद उसके खेलने वाले उदास और दुःखी हैं। लेकिन ऐसा क्यों है। कि पबजी खेलने वालों के आसपास रहने वाले लोग आज पबजी बैन हो जाने से खुश हैं। आज पबजी के बैन की वजह से बच्चों को दुखी देखकर भी मां बाप खुश हैं। कहते हैं मां बाप बच्चों को दुखी नहीं देख सकते। और वह बच्चों की हर मुराद पूरी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन पबजी के बैन से आज मां बाप दुखी नहीं हैं। क्योंकि मां बाप जानते हैं कि आज का यह दुख बच्चों के कल के लिए बेहतर है।

गेम तो मन में ताज़गी और माहौल में खुशी लाता है। लेकिन पबजी जैसा गेम इंसान को थका देता है। खेलने वाले उस गेम ज़ोन से निकल ही नहीं पाता जो ज़ोन उसके किसी काम का नहीं।

क्यों आज पबजी जैसे गेम की वजह से हर रिश्ता प्राभावित है?

क्यों आज पबजी जैसे गेम की वजह से हम हार रहे हैं?

क्यों आज हम पबजी जैसे गेम के आगे हार रहे हैं?

क्या आज हमारे आस-पास कोई ऐसा गेम नहीं जिसको हम कुछ देर खेल कर खत्म कर दें?




आज एक पबजी के बैन होने से ऐसा नहीं है कि पबजी जैसे गेम अब हमारी ज़िन्दगी में नहीं आयेंगे। यह सिलसिला अब खत्म होने वाला नहीं। लेकिन पबजी जैसे गेम से हमको अपने को और अपनों को कैसे बचाना है। यह सबसे बड़ा विषय है। 

जीतने की ललक ज़िन्दगी में हो, हारने का डर किसी को ना हो।

गेम खेलें और जीतने की कोशिश भी करें। मगर ध्यान रहे गेम को जीतने में रिश्तों को ना हार जाए।

आज पबजी बैन हो गया तो क्या हुआ। आज भी बहुत सारे गेम हैं। जिनको हम पीछे छोड़ आये हैं। ज़रा एक बार उन गेमों को याद तो करें।

बारिश का पानी काग़ज़ की कश्ती को आज भी ढूंढता होगा। जो कभी बरसात में तैरती थी हमारी वजह से।

पंखे की हवा उन जहाज़ों को कैसे भूल सकता है जो कभी हम अपनी भरी हुई कापी के पन्नों को फ़ाड़ कर बनाते और बड़े शान से उनको उड़ाते थे।

वह रूमाल से आंखों को ढंक कर दोस्तों को पकड़ना, तो कभी कुछ ना समझ आने पर चिड़िया उड़ खेल खेलते हुए नाजाने कितने ही ऐसे जानवरों को भी उड़ा देते जो उड़ना नहीं जानते। और फिर इन छोटी-छोटी बातों पे बड़े-बड़े कहकहे लगा कर ना जाने कितने दुखों को हरा जाते थे। और जीत लेते थे वह हकीकी खुशी जो कभी हमें दुखी नहीं कर सकती।












Sunday, August 30, 2020

Rickshe wale |





रिक्शेवाले.....

कोशिश करके थक गयी वह
हार के घर जा रही थी वह
मन में निराशा,आंख में आंसू
बोझल मन से रिक्शे पे बैठी
रिक्शा चला, और आगे बढ़ा जो
अपनी निराशा और थकन को
भूल के वह बस तकती रह गई
एक बुजुर्ग की वह मेहतन
जो रिक्शा चला कर हो रही
लेकिन फिर भी मेहनत वह
करना उनकी मजबूरी है
ऐसा कैसे सोच यह हम ले
क्योंकि समझें हम मजबूरी जिसको
मजबूरी को फ़र्ज़ समझ कर
करना उनकी आदत है।
पहुंचे जब तक हम घर तक
मन की निराशा छट गई थी
उम्मीदों की एक किरण को
रिक्शे वाले ने जला फिर दी
कोशिश करना तब तक है
कामयाबी ना मिल जाए जब तक की


#Little_Star

Chadwick Boseman | चैडविक बोसमेन |

 








Little_Star | Life | Love Poetry | Sad Poetry |





मैं और वह


कभी खामोश रहती थी कभी वह रूठ जाती थी
मेरी बातों से ‌वह अक्सर बहुत ही टूट जाती थी

कभी मैं सोचता ही रह जाता और वह कर गुज़रती थी
मेरी आदत पे वह अक्सर बहुत अफसोस करती थी

कभी आती जो मुश्किल तो वह मज़बूत हो जाती 
मेरी कमज़ोरियों पे अक्सर वह बहुत गमगीन हो जाती

कभी करते मुहब्बत हम यह बातें वह ही कहती थी
मेरे अब के रवैए पर वह अक्सर रो भी देती थी

कभी जिससे हमारे हर तरफ खुशियां ही रहती थी
हज़ारों गम उसे देकर भी मैं अक्सर शाद रहता था

कभी करते बहुत परवाह ऐसा वह ही कहती थी
मेरी बेपरवाहियों से अक्सर वह बहुत मायूस हो जाती

कभी पीसी कभी टीवी कभी फोन पर ही मैं
लगा रहता मज़े लेता और खुश हो रहा होता

कभी कहता था उसको जान मगर फिर भी मैं
उन्हीं बेजान चीजों में मैं अपना वक्त गंवाता था

कभी खाना वह खाती थी मेरे रहते भी तन्हा वह
मैं अब तन्हा बहुत उसकी तन्हाई याद करता हूं

कभी बाहों के तकिए को तरसती वह बहुत रहती
मेरी आगोश अब अक्सर उन्हें फिर याद करती हैं

कभी समझा नहीं उसको कभी ना वक्त दिया उसको
मेरी नज़रें मेरा दिल चाहता अब अक्सर उससे मिलने को

कभी वह थी मगर हमने दिया उसको ना साथ अपना
अभी अक्सर ना जाने क्यूं मेरा दिल साथ तेरा चाहे

कभी जिससे वफा ना कि कभी जिसकी ना कि परवाह
मेरी नज़रें उसे अक्सर ना जाने खोजती क्यूं हैं

कभी रहती थी मेरे पास मेरा साया सा बन कर जो
वह अब अक्सर मुझे मिलने ख्वाबों में भी नहीं आती

कभी जीती थी वह मर-मर के और मैं खामोश रहता था
वह अब मर के भी ज़िंदा है और मैं जी के भी मरता हूं

कभी कोई सितारा आसमां पर जब भी दिखता है
मुझे अपना सितारा वह बहुत फिर याद आता है

-Little-Star












Sunday, August 16, 2020

When was the first search engine invented?

The first few hundred web sites began in 1993 and most of them were at colleges, but long before most of them existed came Archie. The first search engine created was Archie, created in 1990 by Alan Emtage, a student at McGill University in Montreal.

How many people in the world are over 100 years old?

A growing number of Americans are living to age 100. Nationwide, the centenarian population has grown 65.8 percent over the past three decades, from 32,194 people who were age 100 or older in 1980 to 53,364 centenarians in 2010, according to new Census Bureau data.

Wednesday, July 29, 2020

Kahan Se Kahan | Unlock Stories | Unlock Poetry | Lockdown Poetry | लॉकडाउन की हकीकत | लॉकडाउन से अनलॉक तक क्या हुआ | Lockdown To Unlock | लॉकडाउन से अनलॉक तक | Little_Star



कहां से कहां






कहां कि वक्त नहीं था आज के लिए
कहां की हर आज यूं ही कल हो रहा
कहां कि फ़िक्र थी हर आने वाले कल की
कहां कि हर रोज़ गुज़रा हुआ कल हो रहा
कहां कि फुरसत नहीं थी रूकने की
कहां कि ठहर गयी ज़िन्दगी सब की
कहां कि हम रोज़ कमाते थे खाने के लिए
कहां कि हर रोज़ खा रहे हैं मगर बिना कमाये ही
कहां कि हम परेशान रहते थे कपड़े और ज्वेलरी के लिए
कहां कि दो कपड़ों में गुज़र रही ज़िन्दगी सबकी
कहां कि रोज़ मिलते थे यारों से अज़ीज़ों से
कहां कि मिलना-मिलाना एक ख्वाब हो गया
कहां कि तरसते थे एक छुट्टी को पाने के लिए
कहां कि राहे बना रहे छुट्टी की छुट्टी करने के लिए
कहां कि तरस रहे थे अपनों के लिए घर के लिए
कहां कि वह अपने ही कह रहे काम पे जाने के लिए
कहां कि शिकायत थी सबको कि हम देते नहीं वक्त
कहां कि आज सबको यही वक्त अखर रहा है
कहां कि वह एक झप्पी भुलाती थी वह दुख सारे
कहां कि वह झप्पी अब डर जो है कोरोना का
कहां कि बिना मिले दोस्तों से दिन नहीं कटता
कहां कि दोस्तों से बिना मिले ही जी रहे हैं हम
कहां कि बहुत कुछ था कभी पाने के लिए
कहां कि आज हर दिन ही कुछ खो रहे अपना
कहां कि तरसते थे हम घर में रहने के लिए
कहां कि बेचैन हैं बहुत घर से निकलने के लिए
कहां कि लॉंग ड्राइव एक आदत में शामिल था
कहां कि दो कदम चलते भी डर लगता है
कहां कि एक रूटीन थी कभी दिन महीनों की
कहां कि वह आदत अब और कहां की वह दिनचर्या
कहां कि बहुत थक जाते थे कामों को करते-करते
कहां कि तरस रहे हैं कामों को करने के लिए
कहां कि नींद भर सो नहीं पाते थे काम की वजह से
कहां कि आज जाग रहे हैं कामों की फ़िक्र में 
कहां कि सबको शिकायत सभी से थी 
कहां कि आज सबको शिकायत है वक्त से
कहां कि हम सोचते थे हम चल रहे वक्त के साथ
कहां कि आज वक्त यूं ही अकेला ही चल रहा

-Little-Star









Wednesday, July 15, 2020

Emoji Life | Digital Love | Online Life |


इमोजी लाइफ.....


यह दौर नहीं है खत का शायद
Message का ज़माना है
Fb और insta की कहानी है
मैसेज लिखते हैं मुहब्बत का वह
और कर देते हैं delete all  भी
आज वह कहां और तुम कहां
हर तन्हाई का साथी है यहां
याद उनकी जो आ जाए कभी
WhatsApp और messenger है ना
बातें वह जो दिल की है हो जाती यहां अक्सर
कभी voice तो कभी video call से
कहने को तो हर बात ही हो जाती है मुकम्मल
कहना ना यहां हम को कुछ भी ना अगर हो
है रास्तें और भी इन सब के सिवा
हर बात की हर सोच की हर याद की यहां
हर चीज़ की हर फेस की हर काम की यहां
है नाम यहां उसका Emoji कभी smiley
है नाम तो इमोजी मगर काम बहुत हैं
एक बात जो कहना है तो सौ रास्ते यहां
हूं सोचती फिर भी मैं यह बातें अक्सर
हर काम मुकम्मल है हर बात मुकम्मल
करना जो कभी चाहें, बातें वह कभी मन की
लफ़्ज़ों की कमी जब हो कहना भी ज़रूरी हो
हो बात जो कुछ कहना कह फिर भी ना पाते हो
ऐसे में इमोजी ही फिर साथ निभाता है
यह सच है मुहब्बत की Emoji है बहुत लेकिन
जो बात रहती है काग़ज़ पे कलम से लिख कर के
वह बात नहीं लेकिन message की लिखावट में
वह बात नहीं रहती इमोजी की इमोजी में
वह खत तो सदा रहते यादों में निगाहों में
Message तो बहुत जल्दी हो जाते clear chat
काग़ज़ के वह खत तो संजोय बहुत जाते
है आज ना मुहब्बत वह और ना वह ज़माना
है आज बहुत जल्दी जीने के तरीके हैं
है आज मुहब्बत जो हो जाती बहुत जल्दी
और फिर यह मुहब्बत है टूट भी जाती है
है आज कहां रिश्ते और बात कहां की वह निभाना
फुर्सत कहां किसको रिश्तों को बनाने की
फुर्सत कहां हमको रिश्तों को निभाने की

-Little-Star



Tuesday, July 14, 2020

Ek Yeh Sadi Ek Woh Sadi | Waqt | COVID-19 | Little _Star





एक यह सदी एक वह सदी........

👁️  कहते हैं हर ज़माना लौट के आता है। मगर ज़रा बदलाव के साथ।

 🎲  फिर चाहे वह कपड़ों का हो, खाने का हो या फिर आप के किये कर्म का हो। हर वक्त लौट के आता है। यह याद दिलाने के लिए की यह काम पहले भी हो चुका है।

🗝️ अब हम जो बात कह रहे हैं वह ज़्यादा दूर की नहीं बल्कि हमारे आस-पास हो रहे कामों को देख कर कह रहे हैं।

🔐 लॉकडाउन की वजह से जब लोगों का काम धंधा लगभग बंद हो गया। अगर कुछ चल रहा था। तो वह थी खाने-पीने की दुकान जैसे-अनाज, फल, दूध, सब्ज़ी आदि।

💀 तब फिर एक दौर शुरू हुआ। इन्हीं सब चीजों की दुकान खुलने का। और फिर देखते-ही-देखते हर रोज़ हर गली मुहल्ले या यूं कह लें कि हर घर में एक दुकान खुलने लगी। और हर दूसरा आदमी फल सब्ज़ी और किराना की दुकान खोलने लगा। बात यहीं पर खत्म नहीं हुई। क्योंकि इसी के साथ-साथ हर घर में पके हुए खाने, फास्ट-फूड, बिरयानी पराठों से लेकर अचार पापड़ तक का मीनू Social Networking के जरिए से सामने आने लगा। जो कि बहुत ही मुनासिब दाम में और साथ ही साथ होम डिलीवरी की सुविधा के साथ।

📈 जिन कामों को कभी हम ऐब समझते थे वह आज हुनर हो गया।

😯 हर रोज़ एक नये लोग का वही काम जो बहुत सारे लोग पहले ही शुरू कर चुके थे। सामने आ रहा था। और हमारी नज़रों में किसी ज़माने का मंज़र जो कभी किताबों में पढ़ा था। और अपने बड़े बुज़ुर्ग से कभी किसी ज़माने में किसी ज़माने की बातों को सुना था।




👣 वह बातें जिसे हम इतिहास कहते थे। वही इतिहास हमारे सामने था। कि किसी ज़माने में लोग किस तरह ज़िन्दगी गुज़ारते थे।जब हर कोई खेती बाड़ी करता था। कोई कुछ उगाता था तो कोई कुछ। और फिर जिस को जिस चीज़ की ज़रूरत होती थी। तो लोग सामान के बदले सामान देकर सामान लेते थे। जैसे कोई चावल की खेती करता था। और उसको सब्ज़ी की ज़रूरत होती थी। तो वह चावल देकर सब्ज़ी लेता था। इसी तरह और भी बहुत सारे सामानों का आदान-प्रदान करके लोग अपनी ज़िंदगी गुज़रते थी।






👣 ठीक वही माहौल आज भी दिख रहा है। क्योंकि आज हर कोई ज़रूरत का सामान बेच रहा है। और वक्त वही दिख रहा है कि किसी को प्याज़ चाहिए तो वह तेल देकर प्याज़ ले सकता है और कोई आलू देकर समोसे ले सकता है या यूं कह लें कि कच्चा सामान देकर पका हुआ खाना भी ले सकता है।






✨  कहां कि हम आसमानों तक पहुंचने की बात करते थे। चांद पर पहुंच कर फख्र करते थे। बड़े-बड़े ईजाद को हमने अपने नाम कर लिया।

☔ होने वाली बारिश और आने वाली गर्मी को पहले से बता कर हम ने खुद को किया से किया समझ लिया था।

🌹 हम भूल गये थे कि हमारे ऊपर भी कोई है। जो हम सब के हर अम्ल हर सोच को देख रहा है। हम इबादत भी करते थे तो यूं कि बस अदा हो जाए। कबूल की फ़िक्र किसको थी। हम तो अपने दिमाग अपनी सोच और अपनी Business Strategy  पर फख्र करते थे।







♠️ और फिर कोरोनावायरस के रूप में कुदरत का एक अनदेखा सा दिखने वाला वाइरस ने सबको हिला कर रख दिया।

🌍 आज इंसान बड़ा बेबस व मजबूर दिख रहा है। बहुत सारी जानकारी और पहुंच के बावजूद इंसान के अंदर का डर उसके चेहरे पर दिख रहा है। और इंसान उससे बचने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहा है। 


🚲  कोरोनावायरस दुनिया को घूमता हुआ हिन्दुस्तान की तरफ बढ़ा। और हिन्दुस्तान में कोरोनावायरस की आहट सुनाई दी।
 
📢 और फिर 22 मार्च को कोरोनावायरस के चलते जनता कर्फ्यू का ऐलान हुआ।

🔐  और फिर कोरोनावायरस के बड़ते कदमों को रोकने के लिए 24 मार्च को अचानक से 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान हो गया।

😯 हर कोई हैरत में पड़ गया यह किया हो गया।

📻  हर किसी ने यह जानने के लिए कि इस लॉकडाउन में क्या होगा। और कैसे होगा। जानने के लिए खबरों पर ध्यान देना शुरू किया।

📺 खबरों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार कोई कहीं आ जा नहीं सकता। सभी स्कूल कालेज सरकारी और प्राइवेट आफिस दुकान सब बंद रहेंगे।

✈️ यहां तक कि हवाई जहाज़, ट्रेन सब बंद रहेगा।

🌶️  खाने-पीने का सामान मिलता रहेगा।

🍒 रोज़ एक खास वक्त में ज़रूरत के सामान जैसे अनाज, फल, सब्ज़ी और दूध मिलते रहेंगे।

🏡 हर कोई घर में कैद हो गया।

🥮 सारे होटल, मॉल्स बंद हो गये।

😛 और फिर अचानक से लोगों में एक खुशी की लहर दौड़ गई।

🏠 हर कोई खुश और उत्साहित था। कि चलो इसी बहाने कुछ दिन घर में रहने का मौका मिल गया। हर कोई परिवार के साथ था। और खुश था।

🍜 कोई घर से बाहर जा नहीं सकता था। बाहर का खाना घर में आ नहीं सकता था। इस लिए घरों में ही पकवान बनने लगी। रोज़ नये नये खाने बनाना और उसकी फोटो शोशल नेटवर्किंग साइट्स पर डाले जाने लगी। हर तरफ एक अलग ही माहौल था। हर तरफ खुशी और उल्लास का समां था। यूं जैसे किसी को कोई दुख कोई परेशानी नहीं। ऐसा लग रहा था कोरोना कोई बीमारी नहीं बल्कि मसीहा बन कर आया है।

🤓 वह बड़े बिज़नेस मैन, बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट चलाने वाले जो कभी वक्त की कमी की वजह से परिवार को वक्त नहीं दे पाते थे। वह अब हर वक्त परिवार के साथ थे। और सब खुश थे। बड़े-बड़े लोग बड़ी ही शान से घर में झाड़ू लगाने और झूठे बर्तन को धोते और बड़े ही शान से अपने इन सब कामों को करने की फोटो Facebook और Instagram पर अपलोड करते। और लोगों की वाहवाही लूटते। क्योंकि कोरोनावायरस एक संक्रमित बामारी थी। इस की वजह से सब के नौकर और काम वाली बाई की भी छुट्टी थी। कोई भी नौकर मुलाज़िम को काम पर नहीं बुला सकता था। 

🔐 वक्त बीतता रहा। कोरोनावायरस के केस बड़ते रहे, लॉकडाउन बढ़ता रहा। लोगों की खुशी फ़िक्र में बदलने लगी। जमा पैसे खत्म होने लगे। लोगों को काम की फ़िक्र शुरू हो गयी। नौकरियों से unpaid leave मिलने लगी।

😣 घर परिवार का माहौल बदल गया। कुछ दिन पहले जहां खुशी का माहौल था। वहां आज फ़िक्र और परेशानी का माहौल था।





👀 और फिर इस कोरोना काल ने हम को बहुत कुछ सिखा दिया।
मुश्किलें बहुत है। लेकिन हम उन मुश्किलों से लड़ रहे हैं। मुश्किलों ने हमको लड़ना सिखा दिया। मुश्किलों ने हमारी सोच को बदल दिया। इस कोरोना काल हम वह सिख गए। जो हम बड़ी फीस देकर बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट में नहीं सीख सकते थे। 

♟️ बात वक्त की हो और वक्त कोई सीख ना दे। ऐसा वक्त कभी आया नहीं है। लेकिन यह वक्त बहुत बड़ी सीख दे गया। 'बड़े छोटे' का फर्क और 'ऊंच-नीच' का भेद मिटा गया। 'अच्छे-बुरे' का फर्क बता गया। और 'लोग क्या कहेंगे' यह गम मिटा गया।

🔌 यह वक्त मुश्किल बहुत है। लेकिन जिस ने इस वक्त से सबक ले लिया। वह कभी भी हार नहीं सकता। इस लिए इस वक्त को एक इम्तेहान की तरह लें। और इस इम्तेहान में पास होने के लिए हर मुमकिन कोशिश करें। आप पास ज़रूर होंगे यह हमारा नहीं वक्त का वादा है।

🕚 मुश्किल की घड़ी है। लेकिन कुछ है जो चल रहा है। और वह है वक्त और हमारी सोच। 

 🕴️रूकें हैं तो हम सिर्फ हम।

-Little-Star








         











Sunday, July 12, 2020

Amitabh Bachchan tests positive for Coronavirus| Abhishek Bachchan| Little_Star









अमिताभ बच्चन हुए कोरोना पाज़िटिव रेखा का बंगला हुआ सील, कल रात की यह बात सुन पढ़ कर हर किसी की जिज्ञासा का यह आलम था कि जैसे कोई नयी फिल्म रिलीज़ हो गई है और हर किसी को इस फिल्म की कहानी जानने की जल्दी थी। कि यह किस्सा क्या है।

और फिर हकीकत का पता लगते-लगते भी फसाना मशहूर हो चुका था। कि अमिताभ बच्चन कोरोना पाज़िटिव और रेखा का बंगला सील कर दिया गया है।

जब कि हकीकत कुछ और ही थी और वह हकीकत यह थी कि जिस दिन अमिताभ की रीपोर्ट पाज़िटिव आई उसी दिन रेखा के गार्ड की भी रीपोर्ट पाज़िटिव आई। और दोनों बातें इस तरह से शोशल मीडिया पर चलने लगीं जैसे कोई बहुत बड़े खज़ाने का राज़ पता चल गया हो। और राज़ भी ऐसा कि हर कोई इस राज़ को हर किसी को जल्द से जल्द बताना चाहता हो।





लेकिन यह बात बहुत ही अफसोस और गलत है कि किस तरह बड़ी ही आसानी से एक बात को किस्सा बना देते हैं यह जाने बिना कि हकीकत क्या है।

अमिताभ और रेखा की बातें किसी ज़माने में किसी फिल्म की कहानी से ज़्यादा चर्चा में रहती थी। यहां तक कि यह किस्सा भी मशहूर है कि रेखा अपनी मांग में अमिताभ बच्चन के नाम का ही सिंदूर लगाती हैं।

लेकिन कल की बात और आज की बात में बहुत फर्क है। आज अमिताभ बच्चन अगर दादा और नाना के पदवी के साथ किसी के ससुर भी हैं। और कोई समझदार इंसान अपने रिश्ते और मर्यादा को बखूबी समझता है।

अब अगर अमिताभ बच्चन के कोरोना पाज़िटिव होने की बात है तो हम यह बात आप को बता दें कि इस बात की जानकारी खुद अमिताभ बच्चन ने अपने ट्विटर अकाउंट से दी कि उनकी कोरोना की जांच पाज़िटिव आई है। और वह नानावती अस्पताल में भर्ती होने जा रहे हैं। उन्होंने यह भी लिखा कि फ़िक्र की बात नहीं है आप सब दुआएं करें ।





और फिर अमिताभ बच्चन के कोरोना पाज़िटिव की बात को सही होने के थोड़ी ही देर बाद एक और खबर चलने लगी कि अभिषेक बच्चन की रिपोर्ट भी पाज़िटिव आई है। और अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन दोनों नानावती अस्पताल ऐडमिट होने के लिए जा रहे हैं।



बात बहुत ही फ़िक्र थी लेकिन इन बातों को लेकर जो-जो बातें सामने आयीं उन बातों को सुनकर अफसोस भी हुआ और गुस्सा भी आया। क्योंकि एक तरफ जहां अमिताभ बच्चन के फैन दुख में दुआ और फ़िक्र कर रहे थे कि जल्द से जल्द अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन ठीक हो जाएं वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इस को पब्लिसिटी स्टंट बता रहे थे। कि चर्चा में बने रहने और लोगों की सहानुभूति के लिए बिग बी यह सब कर रहे हैं।

आज पूरी दुनिया कोरोनावायरस की चपेट में है आज हर इंसान चाहे वह खास हो या आम इस बीमारी में मुब्तिला है। हां यह अलग बात है कि आज हज़ारों लाखों लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं। मगर कोई याद नहीं रखता। और कोई नामचीन हस्तियां का नाम किसी बात में आ जाए तो चर्चा फ़िक्र और बहस सब शुरू हो जाती है। 




अक्सर हम बहुत जल्द किसी को जज कर लेते हैं यह सोचे बिना कि हम जिस के बारे में बात कर रहे हैं वह किस मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। और हमारी बातें किसी के दुखों को और बड़ा सकती हैं। यह सच है कि कोई किसी के दुख को कम नहीं कर सकता लेकिन हमको यह हक किसी ने नहीं दिया कि हम किसी के दुखों को बढ़ा दें। और आज हम यह कामना करते हैं कि यह कोरोना दौर से हम सब जल्द से जल्द बाहर आयें। और हम सब फिर से एक नये दौर की शुरुआत करें। जहां खुशी और आपसी मेल मुहब्बत के साथ हर कोई मिल जुल कर रहे।

-Little-Star







Monday, July 6, 2020

Poetry on Sonu Sood | Aasmaa se Aage | Little_Star


                                   सोनू सूद





सोनू ओ सब के सोनू
कैसे वह सूद तेरा
हम सब अदा करेंगे
तूने किया जो सब का
बेलौस बेगरज़ से                                
कोई इसे है समझे 
मशहूरियत का तड़का
लेकिन वह काम तेरा
और वह लगन तुम्हारी
समझे वही है इसको
आंखों से जिसने देखा
कामों को तेरे देखा
कोशिश को तेरे माना
दुनिया ने जिसको देखा
तेरी वह टीम सोनू
लगती थी हमको ऐसी
जैसे कोई लड़ाई
लड़ने वह जा रहे हैं
करने फतह वह जैसे
कोई किला बड़ा सा
और फिर फतह किया भी
हर एक दिलों को तूने
सब के दिलों पे तूने
नेकी और प्यार के
झंडे लगा दिये हैं
हर कोई तकता ऐसे
जैसे कोई फरिश्ता
धरती पे आ गया हो
दिल को ना जाने कितने
उम्मीद को जगाया
उम्मीद भी वह ऐसी
 जिसको किया मुकम्मल
आंखें जो थक गयी थी
राहों को तकते-तकते
अपनों के इंतेज़ार में
और घर के दीदार में
तूने जो राह बनाई
राहें संवर गई है
हंसते हैं हर वह चेहरे
घर को जो जा रहे हैं
रस्ते भी देख सबको
यूं मुस्कुराए जा रहे हैं
जैसे कोई हो अपना
उसको गले लगा ले
तूने क्या जो सोनू
कैसे चुकाएं उसका
वह सूद जो है बाकी
वह मूल जो है बाकी।

-Little-Star



🖋️ नेकी करने के बहुत से रास्ते हैं। सोनू सूद के पास दौलत थी और उन्होंने अपनी दौलत का सही इस्तेमाल किया। जिसकी वजह से उन्होंने बहुत सारी दुआएं कमा ली।

🖋️ कहते हैं दौलत खत्म हो सकती है लेकिन दुआएं नहीं।

🖋️ सोनू सूद ने जितनी दौलत खर्च की उससे कहीं ज़्यादा दुआएं कमा लीं।

🖋️  कहते हैं दुआ से दौलत मिल सकती है लेकिन दौलत से दुआ नहीं। लेकिन आज सोनू सूद ने दौलत खर्च करके दुआएं अपने नाम कर गये।

🖋️ आप के पास जो हो उसी से दूसरों की मदद करें।

🖋️ किसी को सही राह दिखा देना, किसी को सही मशवरा दे देना या किसी के कुछ भी काम आ जाना भी एक नेकी है।

🖋️ अक्सर हम सोचते हैं कि हमारे पास देने के लिए कुछ नहीं। लेकिन हम गलत होते हैं क्योंकि हर किसी के पास कुछ ना होते हुए भी बहुत कुछ होता है।

🖋️  दुनिया में कमाने के लिए बहुत कुछ है। यह अलग बात है कि हम सिर्फ दौलत कमाना चाहते हैं।



🖋️ लॉकडाउन की वजह से लाखों मज़दूर जहां कहीं काम रहे थे फंस गये थे। क्योंकि कोरोनावायरस की वजह से सब काम बंद था। और ट्रांसपोर्ट भी बंद थे। और हर कोई घर जाना चाहता था। लेकिन लॉकडाउन की वजह से कोई कहीं आ-जा नहीं सकता था। ऐसे वक्त में जब मज़दूरों के पास अपने घर जाने का कोई रास्ता नहीं बचा तो मज़दूरों ने पैदल ही घर जाना शुरू कर दिया।

🖋️ तब सोनू सूद ने बस के जरिए से लोगों को उनके घर तक पहुंचाने का इरादा किया। और twitter पर उन्होंने अपना Whatsapp  नम्बर दिया कि जो कोई भी मुंबई से अपने घर जाना चाहता है वह सोनू सूद और उनकी टीम से सम्पर्क करे।

🖋️ इस काम को सोनू सूद और उनकी टीम ने बहुत अच्छे से किया। 

🖋️ सोनू सूद की वजह से ना जाने कितने ही प्रवासी अपने घर पहुंच पाए।

🖋️ सोनू सूद ने जो किया वह कहानी नहीं बल्कि हकीकत है और इस हकीकत से किसी को कोई इनकार नहीं।

-Little-Star






Friday, June 26, 2020

Mirror (Woh Apni si Chawi) Little_Star





मिरर (वह अपनी सी छवि)

आईना बन के खड़ा था
तो निहारते थे सभी
देख के मुझे मुस्कुराता था कोई
तो कोई देख के उदास बहुत
सुलझ गयी ना जाने उलझी लटे कितनी
संवर गयी ना जाने दुल्हनें कितनी
मैं आईना ना जाने कितनें का
थी छवि मेरे अंदर ना जाने कितनों की
कभी टूटा जो दिल किसी का भी
वह आ के जुड़ता हमीं से था
कोई आंखों को तेरता था मुझे
कोई भवों को सिकोड़ता था बहुत
हर किसी के आंखों का काजल सवांरते थे हमीं
वह उन के होंठों की लाली हमें से थी
वह अश्क आ जो गया आंखों में कभी
नज़र बचा के सभी से नज़र मिलाते वह हमीं से थे
वह सुर्खियां तेरे हसीन गालों की
मुझे घंटों निहारने से हैं
बहुत चाहते थे हमें वह
बहुत निहारते थे हमें वह
मैं था भी तो उनका यह हक था ही उन्हें
मगर वह टूटा जो एक दिन दिल उनका
हुए गुस्से में वह बहुत अपसेट
वह उन के दर्द में नहीं वहां कोई अपना
वह बहुत अकेली और आईना अकेला मैं
वह तैश में थी बहुत और बहुत गमगीन
और मैं खामोश तमाशाई उनका
थे नहीं लफ्ज़ मेरे पास कोई उलफत के
मैं तो खामोशी का पैकर था अज़ल से ही यहां
मेरी खामोशी से आजिज़ आकर
वह मोबाइल जो मुझे तान के मारा उसने
था जो गुस्सा वह किसी का जो उतारा मुझ पे
मैं वह तन्हा सा अकेला सा मिमर बेचारा
मैं जो टूटा तो बहुत टूट के बिखरा एक दम
हां मगर टूट के यह बात को जाना हमने
ना कोई मरता है यहां कोई किसी के भी बिना
हर कोई जीता है यहां ज़िन्दगानी अपनी
संभल-संभल के करचियों को समेटा उसने
कोई अफसोस कोई उदासी ना थी उन को
फिर कहां हम और कहां का वह याराना
वह जो रहते थे बड़ी शान से हम वह तन्हा
था मगर अब मेरी जगह पे वहां तन के कोई और।

-Little-Star









Tuesday, June 16, 2020

एक ख्याल | Sushant Singh Rajput | Actor |


एक ख्याल "सुशांत सिंह राजपूत" की मौत से


"एक ख्याल"

क्यूं ना स्कूल एक ऐसा भी खोला जाए
हो पढ़ाई  वह जहां चेहरे को समझने की
आज एक विज्ञापन ऐसा भी निकाला जाए
है ज़रूरत हमें टीचर की जो पढ़ाना जाने
कैसे जीना है हमें मुश्किलों और हालातों में
हंसते चेहरों के समझने का हुनर जिसमें हो
वह जो जिंदा हो मगर मौत से लड़कर तन्हा
ऐसा प्रिंसिपल भी उस स्कूल का खोजो यारों
हो पढ़ाई भी बहुत सख्त और बहुत ही उम्दा
एक गिनती ऐसी भी अब याद कराया जाए
एक मरते हैं तो मर जाते हैं ना जाने कितने
ऐसी मौतों के बहाने को अब गिनाया जाए
मिल नहीं जाती हैं हर शख्स को खुशियां सारी
ऐसी बातों को समझने का सलीका भी बताएं
वह किताबों का जो लेसन हो सबक आमोज़
हंसते चेहरों को समझने का तरीका जाने
वह छलकती है जो आंखों से हजारों खुशियां
ऐसी खुशियों को बचाने का हुनर भी जाने
हो जो दौलत वो बहुत और शोहरत की चमक
ऐसी दौलत से ही खुशियों को बचाने के लिए
हो एक एगज़ाम भी ऐसा खुशियां परखने के लिए
क्यूं ना आदमी को भी अब इंसान बनाया जाए
कच्चे धागों की मजबूती पे यकीं है जितना
पक्के रिश्तों की भी गहराई का अंदाज़ा कराया जाए
किस तरह हार के भी जीते हैं न जाने कितने
ऐसे लोगों की कहानी को सुनाया जाए
वह जो दौलत को ही समझे हैं सुकूं का सामान
ऐसी दौलत से भी बचने का तरीका जाने
वह जो सुनते हैं जमाने से बहुत सी बातें
ऐसी बातों को समझने का हुनर भी सीखें
करें कोशिश कभी ऐसी जो सभी याद रखें
ऐसी कोशिश को भी करने की शिक्षा दें हम
है डिप्रेशन एक बला जिसमें गिरफ्तार ना जाने कितने
ऐसी-जैैैसी ही बलाओं से रिहाई का तरीका जाने
एक हीरी जो कभी मौत से डरता ना हो
एक हीरो जो कभी दुश्मन से हारा ना हो
एक हीरो जो कर देता है अनहोनी को होनी
एक हीरो जो रहता है हमेशा हीरो बन कर
क्यूं ना एक फिल्म अब ऐसी भी बनाया जाए
ऐसी हीरो की कहानी को हकीकत भी बनाया जाए।

-Little-Star









Thursday, June 11, 2020

Aag: The Fire | Hindi poetry | Little _Star



आग

वह आग जले तो उजाला घरों में होता है
वरना बुझे आग तो अंधेरा घरों में हो जाए
वह आग जले तो बुझे पेट की आग
वरना भूखे ही मर ना जाते वह सभी
वह आग ही तो है जो जलते हैं अपनों से
वरना हर कोई मिल-जुल के रहा ना करे
वह आग ही तो है जो जोशे-जुनूं बढ़ाता है
वरना थक-हार के कब के बैठ जाएं ना सभी
वह आग ही तो है जो मुहब्बत में होती है
वरना कोई किसी से क्या प्यार करे
वह आग ही तो है तप के बने सोना जिसमें
वरना सोना भी ना बिकता कोड़ियों में यहां
वह आग ही तो है जो बदले की जलती है
वरना हर शख्स चैन से जीता ना मिले
वह आग ही तो है जो निकल जाए पत्थर से
वरना माचिस की जरूरत किसे है यहां
वह आग ही तो है जो जलाती है तालीम की लै
वरना जिहालत की अंधेरी रात बहुत है यहां
वह आग ही तो है जो दिलों में जलती है
वरना हर शख्स जुदा ना होता किसी से यहां
वह आग ही तो है तो उगलती है ज़ुबां अक्सर
वरना हर बोल ना होती वह मिठास लिए
वह आग ही तो है जो नफरतें बढ़ाती है
वरना यह शहर तो मुहब्बत की मिसालें लिखता

-Little_Star



Monday, June 1, 2020

George Floyd थम गई सांसें.. | Little_Star

 






श्याम श्वेत की बात बहुत पुरानी है......
लेकिन हर युग में यह खुद को दोहराती है।
बात होती है जब भी इंसानों की, तो बात यह भी होती है कि वह कैसा था गोरा या काला।
क्यों नहीं इंसानों को उसके कर्म से आंका जाता?
क्यों शक्ल देख कर अच्छे या बुरे का सर्टिफिकेट दे दिया जाता है?
क्यों गोरे-काले के भेद में मन की सुन्दरता छिप जाती है?
गोरे-काले का भेद तो जन्म से ही शुरू हो जाता है। लेकिन यह भेद किसी के मौत का कारण बन सकता है यह शायद किसी ने नहीं सोचा होगा। 
जॉर्ज फ्लॉइड (George Floyd) को कल तक कौन जानता था?
लेकिन आज जॉर्ज फ्लॉइड (George Floyd) को हर कोई जानता है। लेकिन अफसोस यह जानना उस ना जानने से बेहतर था। क्योंकि जॉर्ज फ्लॉइड(George Floyd) आज इस दुनिया में नहीं हैं।
 अमेरिका जैसे देश के सड़क पर जॉर्ज फ्लॉइड (George Floyd) और पुलिस के बीच ना जाने क्या होता है कि कुछ ही पलों में जॉर्ज फ्लॉइड (George Floyd) की गर्दन उस पुलिस के घुटने से दबी होती है, और जॉर्ज फ्लॉइड के वह तकलीफदेह अल्फाज़ जिस को पढ़-सुन कर आज हर इन्सान के आंख में आंसू है। मगर उस पुलिस वाले को उस वक्त भी जॉर्ज फ्लॉइड (George Floyd) पर रहम नहीं आया जब जॉर्ज फ्लॉइड उससे कभी पानी मांग रहे थे तो कभी सांस ना ले पाने की तकलीफ़ तो कभी गर्दन और शरीर के दर्द को बर्दाश्त ना कर पाने के जुमले कह रहे थे।  लेकिन ना तो उस पोलीस वाले ने उनकी कोई मदद की और ना ही पुलिस के वह तीन साथी जो वहां पर उनके साथ रहते हुए भी कुछ नहीं कर पाए। और सिर्फ खामोश तमाशा देखते रहे। और लगभग सात मिनट के बाद जॉर्ज फ्लॉइड (George Floyd) खामोश हो गये।  

style="clear: both; text-align: center;">


लेकिन उन की खामोशी आज बहुत बड़े शोर में बदल चुकी है क्योंकि जॉर्ज फ्लॉइड (George Floyd) अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी मौत ने आज बहुत सारे सवाल खड़े कर दिए हैं और शायद उन सवालों के जवाब हर कोई जानना चाह रहा है।

आज अमरीका समेत पूरी दुनिया में जॉर्ज फ्लॉइड (George Floyd) की मौत के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है हर किसी के पास एक सवाल है और हर कोई अपने सवाल का जवाब चाहता है।
किसी भी इंसान को बेवजह मारना या किसी वजह के मारना दोनों मामलों में एक बीच का रास्ता ज़रूर ररखना चाहिए। जिससे कि मरने वाला और मारने वाला दोनों संतुष्ट हों।
जॉर्ज फ्लॉइड (George Floyd) के गलती की अगर बात करें तो क्या उनका काला होना ही उनकी सबसे बड़ी गलती थी तो यह उन की गलती नहीं क्योंकि इंसान की हर गलती माफ हो सकती है लेकिन बात जब रंग-रूप की होती है तो बात ही खत्म हो जाती है क्योंकि रंग-रूप कुदरत की देन है।



इस पोस्ट में लिखी गई बातें सोशल मीडिया के जरिए पढ़ी और देखे गये वीडियो के आधार पर लिखी गई हैं।
इस लेख को लिखने का मकसद यह है कि हर इंसान की ज़िंदगी बहुत कीमती है। 

-Little-Star